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अतिरिक्त जिनदास को भी रासक कृतियों का यहां अच्छा संग्रह है। वेसीदास का सुकौशलरास, यशोधर परित ( परिहानन्द ) सम्मेदशिखर पूजा (रामपाल) जिनदत्तरास (रत्लभूषणसूरि) रामायण छप्पय (जयसागर) आदि और भी पाण्डुलिपियों के नाम उल्लेखनीय हैं। यहां भट्टारका द्वारा रचित रचनाओं का अच्छा संग्रह है।
शास्त्र भण्डार दि० औम मस्बिर मालपुरा
मालपुरा अपने क्षेत्र का प्राचीन नगर रहा था। तत्कालीन साहित्य एवं पुरातत्व को देखने से मालूम होसा है कि टोडारायसिंह (तक्षकगर) एवं चाटसू (चम्पावती) के समान ही मालपुरा भी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का अच्छा केन्द्र रहा । जयपुर के पाटोदी के मंदिर के शास्त्र भण्डार में एक गुटका संवत् १६१६ का है जो यहीं लिखा गया था । मालपुरा का दूसरा नाम द्रव्यपुर भी था। यहां सभी जैन मन्दिर विशाल ही नहीं किन्तु प्राचीन एवं कला पूर्ण भी हैं तथा दर्शनीय हैं । ये मन्दिर नगर के प्राचीन वैभव की ओर संकेत करते हैं। यहां की दादाबाड़ी ओसवाल समाज ना तीर्थ स्थान के रूप में प्रसिद्ध है।
यहां तीन मन्दिरों में मुख्य रूप से शास्त्र भण्डार हैं । इनके नाम हैं चौधरियों का मन्दिर, आदिनाय स्वामी का मन्दिर तथा सेरापंथी मन्दिर । यद्यपि इन मन्दिरों में प्रथों की संख्या अधिक नहीं है किन्तु कुछ पाण्डुलिपियो अवश्य उल्लेखनीय हैं। इनमें ब्रह्म कपूरचन्द का पाश्वनाथरास तथा षेकीर्ति के पद हैं ।
शास्त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर करौलो करौली राजस्थान की एक रियासत थी । अाजकल यह सवाईमाधोपुर जिले का उपजिला है । १८ वीं १६ वीं शताब्दी में यहां अच्छी साहित्यिक गतिविधियां रहीं । नथमल बिलाला, विनोदीलाल, लालबन्द प्रादि कवियों का यह नगर केन्द्र रहा था। यहां दो मन्दिर है और दोनों में ही शास्त्रों का संग्रह है। इन मन्दिरों के नाम हैं दि० जैन पंचायती मन्दिर एवं दि० जैन सौगाणी मन्दिर । इन दोनों ग्रंथ भण्डारों में २७५ हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का संग्रह है । अधिकांश हिन्दी की पाण्डुलिपियां हैं । अपभ्रंश भाषा की दरोग चरित्र की पाण्डुलिपि का भी यहां संग्रह है । संवत् १८४८ में समोसरजमंगल चौबीसी पाठ की रचना करौली में हुई थी। इसकी छन्द संख्या ४०५ है । यह संभवतः नथमल बिलाला की कृति है। प्रथ भण्डार पूर्णतः व्यवस्थित एवं उत्तम । स्थिति में है।
शास्त्र भण्डार दि० जैन बीस पंथी मंदिर दौसा
दौसा ढूंढाहर प्रदेश का प्राचीन नगर रहा है। यहां पहिले मीणा झाति का शासन था और उसके पश्चात् यह कछवाहा राजपूतों की राजधानी रहा । इसका प्राचीन नाम देवगिरि था। यहां दो जैन मन्दिर है और दोनों में ही हस्तलिखित ग्रथों का संकलन है।
__इस मन्दिर के प्रमुख वेदो के पिछले भाग में अंकित लेखानुसार इस मन्दिर का निर्माण संवत् १७०१ में हुमा था। यहां के शास्त्र भण्डार में हस्तलिखित ग्रयों की संख्या १७७ है जिनमें गुटके भी सम्मिलित है। अधिकांश नय हिन्दी भाषा के हैं जिनमें परमहंस चौपई ( रायमल्ल) श्रावकाचार रास (जिरादास) यशोधर परित्र (संस्कृत-पूर्णदेव) सम्यकत्वकौमुदी भाषा (मुनि दयानन्द) रामयश रसायन (केश राज) प्रादि यों के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं।