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________________ इनमें प्रत बिधान पूजा (हीरालाल लुहारिया), पयप्रभपुराण (जिनेंद्र भूषण) बाहुबलि छन्य (कुमुदचन्द्र) नेमिनाथ का छन्द (हेमचन्द) नेमिराजुलगीत (गुणचन्न) उदरगीत (छोहल) के नाम उल्लेखनीय हैं । मार दिम छोटा मन्दिर बयाना इस मन्दिर के शास्त्र भण्डार में १५१ पाण्डलिपियों का संग्रह है। मोर जो प्रायः सभी हिन्दी भाषा की है । षोडशकारणावापनपूजा (सुमतिसागर) समोसरन पाठ (लल्लू लाल-रचना स. १८३४) लीलावती भाषा (लालचन्द रचना सं. १७३६) प्रक्षरबावनी (केशब दास रचना गंवत् १७३६) हिन्दी पद (खान मुहम्मद), पादि पाण्डुलिपियों के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है । शास्त्र मण्डार दि. जैन मन्दिर बर बयाना से पूर्व की और वैर' नामक एक प्राचीन कस्बा है, जो प्राजकल तहसील कार्यालय है। यह स्थान नारों पोर परकोटे से परिवेष्टित है । मुगल एवं मर हा शासन में यह उल्लेखनीय स्थान माना जाता था। यहां एक दिन मन्दिर है जिसका शास्त्र भण्डार पूर्णतः अव्यवस्थित है। कुछ कृतियां महत्वपूर्ण अवषय हैं इसमें साघु-वंदना (ग्रानायं कुवर जी रचना काल सं० १६२४) अध्यात्मक बारहखडी (दौलतराम कासलीवाल) के भतिरिक्त पं० टोडरमल, भगवतीदास, रामचन्द्र, खुशालचन्द्र प्रादि का कृतियों का अच्छा संग्रह है। उक्यपुर उदयपुर अपने निर्माण काल से ही राजस्थान की सम्मानित रियासत रही। महाराणा उदयसिंह ने इस नगर की स्थापना संवत् १८२६ में की थी। भारतीय संस्कृति एवं साहित्य को यहां के शासकों द्वारा जो विशेष प्रोत्साहन मिला वह विशेषतः उल्लेखनीय है । जैन-धर्म और साहित्य के विकास की दृष्टि से भी उदयपुर का विशिष्ट स्थान है। वित्तीह के बाद में इसे हो सभी दृष्टियों से प्रमुख स्थान मिला । मेवाड के शासकों में भी जन-धर्म संस्कृति एवं साहित्य के प्रचार एवं प्रसार में अत्यधिक योग दिया और उन्हीं के प्राग्रह पर नगर में मन्दिरों का निर्माण कराया गया। शास्त्र भण्डारों में हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह किया गया। इस नगर में जिन ग्रन्थों की पालिपियां की गयी वे अाज राजस्थान के कितने ही शास्त्र भण्डारों में संग्रहीत है। महाकवि दौलतराम कासलीवाल ने अपने जीवन की १५ शरद ऋतुए इसी नगर में ब्बतीत की थी। और जीबंधर चरित, क्रियाकोश, श्रीपात्रचरित जैसी रचनायें इसी नगर में रची थी। कवि ने दम्नन्दि थावकाचार एथ जीबंधर चरित में यहां का अच्छा उल्लेख किया है। यहां तीन मन्दिरों में शास्त्र भण्डार स्थापित किये हुए मिलते हैं। जिनका परिचय निम्न प्रकार है। शास्त्र भण्डार वि० जैन अग्रवाल मन्दिर दि. जैन अग्रवाल मन्दिर के शास्त्र भण्डार में हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का अच्छा संग्रह हैं जिनकी संख्या ३८८ है। इनमें हिन्दी के ग्रन्थों की संख्या सबसे प्रथिक है। पूज्यपाद को सर्वार्थसिवि की सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि है जो संवत् १३७० की है । इसकी प्रतिलिपि योगिनीपुर में हुई थी। महाकवि दौलतराम कासली. वाल का यह मन्दिर साहित्यिक केन्द्र था। उनके जीवंधर चरित की मूल पाण्डुलिपि इसी भण्डार में सुरक्षित है। इस शास्त्र भण्डार में वर्धमान कवि के वर्धमानरास की एक महत्वपूर्ण पाण्डुलिपि है। इसके अतिरिक्त
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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