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________________ ( पन्द्रह ) कलंकयतिराम (जयकीन) प्रजितनाथरास, श्रविकारास (ब्र० जिनदास) श्रावकाचार (धर्मविनोद) पंचकल्याणक पाठ ( भानभूषरण ) चेतन मोहराज संवाद (खेम सागर ) यदि इस भण्डार की अलंकृत प्रतियां हैं। शास्त्र भण्डार दि० जैन खण्डेलवाल मन्दिर उदयपुर इस शास्त्र भण्डार में १५५ हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह है जिनमें अधिकांश हिन्दी के ग्रन्थ हैं। इनमें मीना (ब्रह्म बिनदास परमहंस राम ( ब्रह्मजिनदास) ब्रह्म विलास (भैया भगवतीदास) बराजा रागीत (कुमुदचन्द्र) दानफल रास (व्र० जिनवास) भविष्यदत्त रास (ब्र० जिनदास) रामराम (माधवदास) आदि के नाम विशेषतः उल्लेखनीय है । भण्डार में भ० सकलकीर्ति की परम्परा के भट्टारकों एवं ब्रह्मचारियों की अधिक ऋतियां है। शास्त्र भण्डार वि० जैन मन्दिर संभवनाथ, उदयपुर नगर के तीनों शास्त्रों में इस मन्दिर का शास्त्र भण्डार सबसे प्राचीन महत्वपूर्ण एवं बडा है । भण्डार में संग्रहीत सैकड़ों पण्डुलिपिय अत्यधिक प्राचीन है एवं उनको प्रशस्तियां नवीन तथ्यों का उद्घाटन करने वाली है । तथा साहित्यिक दृष्टि से इतिहास को नयी दिशा देने वाली है । वैसे यहां के हस्तलिखित ग्रन्थों की संख्या ५२४ है लेकिन faria पाण्डुलिपियां १५ वीं १६ वीं, १७ वीं एवं १८ वीं शताब्दि की हैं। भ० ज्ञानभूषण, ० जिनदास के प्रों को शतियों का उपसंद है। मट्टारक सकलकोति रास एक ऐतिहासिक कृति है जिसमें भ० सकलकोति एवं भुवनकीति का जीवन वृत्त दिया हुआ है । श्राचार्य जयकीति द्वारा रचित रचना "सीताशोलपताकागुणबेलि" की एक सुन्दर प्रति है जिसका रचना काल सं० १६२४ है । इसी तरह द्र० वस्तुपाल का रोहिणी व्रत ( रचना संवत् १६५४) हरिवंशपुराण- अपभ्रंश (यशःकीति) धर्मशर्माभ्युदय (महाकवि हरिचन्द्र) संवत् १५१४ रामोकाररास (श्र० जिनदास) जसहरचरित टीका प्रभाचन्द्र (सं० १५७४) आदि पाण्डुलिपियों के नाम उल्लेखनीय है । इसी शास्त्र भण्डार में एक ऐसा गुटका भी है जिसमें ब्रह्मजिनदाय की रचनाओं का प्रमुख संग्रह मिलता है । शास्त्र भण्डार दि० जैन तेरहपंथी मन्दिर बसवा बसवा जयपुर प्रदेश का एक प्राचीन नगर है। इसमें हिन्दी के कितने ही विद्वानों ने जन्म लिया और अपनी कृतियों से हिन्दी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन विद्वानों में महाकवि पं० दोलतराम कासलीवाल का नाम प्रमुख है। पंडित जी ने २० से भी अधिक ग्रंथों की रचना करके इस क्षेत्र में अपना एक नया कीर्तिमान स्थापित किया । सेठ अमरचन्द बिलाला भी यहीं के रहने वाले थे। यहां कितनी ही हस्तलिखित ग्रंथों की प्रतिलिपि हुई थी जो राजस्थान के विभिन्न भण्डारों में एवं विशेषतः जयपुर के भण्डारों में संग्रहीत हैं । तेरहपंथी मन्दिर के शास्त्र भण्डार में यद्यपि ग्रंथों का संग्रह १०० से अधिक नहीं है किन्तु दस लघु संग्रह में भी कितनी हो पाण्डुलिपियां उल्लेखनीय हैं। इनमें पार्श्वनाथस्तुति ( पासकवि ) राजनीति सध्या (देवदास) प्रध्यात्म बारहखडी (दौलतराम ) ग्रादि रचनायें उल्लेनीय है ।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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