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शास्त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर पार्श्वनाथ टोडारायसिंह
इस मन्दिर में छोटा सा ग्रथं भण्डार है जिसमें केवल ८१ पालिपियां हैं जिनमें गुटके भी सम्मिलित हैं। यहाँ विलास संज्ञक रचनाओं का अच्छा संग्रह है जिनमें धर्म विलास (यानतराय) ब्रह्मविदास (भगवतीदास) सभाविलास, बनारसीविलास (बनारसीदास ) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं वैसे यहां पर ग्रंथों का सामान्य संग्रह है ।
शास्त्र मण्डार दि० जंन मन्दिर राजमहल
राजमहल बनास नदी के किनारे पर टोंक जिले का एक प्राचीन कस्बा है। संवत् १६६१ में जब महाराजा मानसिंह का आमेर पर शासन था तब राजमहल भी उन्हीं के अधीन था। इसी संबद में राजमहल में ब्रह्मजिनदास कृत हरिवंशपुराण की प्रति का लेखन हुआ था ।
इस मन्दिर के शास्त्र भण्डार में २२५ हस्तलिखित पाण्डुलिपियां हैं जिनमें बह्य जिनदास कृत करमण्डुस, मुनि शुभचन्द्र की होली कथा, विजोक पाटनी का इन्द्रिय नाटक आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । भण्डार में हिन्दी के अधिक ग्रंथ है ।
शास्त्र भण्डार वि० जंन मन्दिर बोरसलो कोटा
दि० जैन मन्दिर में स्थित शास्त्र भण्डार नगर के प्रमुख ग्रंथ संग्रहालयों में से है । इस मण्डार में ४०५ हस्तलिखित ग्रंथों का अच्छा संग्रह है। वैसे तो यहां प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, राजस्थानी एवं हिन्दी सभी प्रार्थी के प्रयों का संग्रह है लेकिन हिन्दी के ग्रंथों की अधिकता है। १५वीं शताब्दी में लिखे गये ग्रंथों का यहाँ अधिक संग्रह है इससे यह प्रतीत होता है कि इस शताब्दी में यहां का साहित्यिक वातावरण श्रखा था । महीपाल चरित ( संवत् १८५६ ), पर्वरत्नावली ( संवत् १८५१) समाघितन्त्र भाषा ( संवत् १८३३ ) ज्ञानदीपचन्द्र (संवत् १८३५ ) याद कितनी ही पाण्डुलिपियां यहीं लिखी गयी थी। भण्डार में सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि आचार्य शुभचन्द्र के शानाय की है जिसका लेखन काल संसद १५४८ है । पल्यविधानरास ( भ० शुभचन्द्र ) चन्द्रप्रभस्वामी विवाहलो ( भ० नरेन्द्रकीर्ति ) चेतावणी, रविव्रत कथा ( मुनि सकलकीति ), पश्वादशे परशीलराम (कुमुदचन्द्र ) नेमिविवाह पच्चीसी (बेगराज ) आदि कुछ हिन्दी रचनायें इस शास्त्र भण्डार की महत्वपूर्ण कृतियां हैं जो भाषा, शैली एवं काव्यात्मक दृष्टि से अच्छी रचनायें हैं ।
शास्त्र भण्डार दि० जेन मन्दिर बयाना
राजस्थान प्रदेश का बयाना नगर प्राचीनतम नगरों में से है। यहां का किला चतुर्थ शतादि से पूर्व ही निर्मित हो चुका था। डा० ग्रस्तेकर को यहां गुप्ता कालीन स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हुई थी। जैन संस्कृति और
मन्दिर १० वीं शताब्दि के पूर्व
लेकिन मुसलिम शासकों का यह
साहित्य की दृष्टि से भी यह प्रदेश अत्यधिक समृद्ध रहा था। यहाँ के दि० जैन के माने जाते हैं इस दृष्टि से यहां के शास्त्र भण्डार भी प्राचीन होने चाहिये थे प्रदेश सदैव कोप भाजन रहा इसलिये यहाँ बहुमुल्य अन्य सुरक्षित नहीं रह सके
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पंचायती मन्दिर का शास्त्र भण्डार यद्यपि ग्रन्थ संख्या की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन भण्डार पूर्ण व्यवस्थित है और प्रमुख रूप में हिन्दी पाण्डुलिपियों का अच्छा संग्रह है जिनकी संख्या १५० है ।