SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (बारह ) संस्कृत लिपि संबत् १४०५, १४६१ १५४७ १ प्रबोध चितामणि २. प्रात्मानुशासन टीक ३. प्रात्मप्रबोध ४. धर्मपंचविपाति १. पार्श्व पुराण ६. यशस्तिलक उम्पू ७. प्रद्युम्न चरित राजशेखर सुरि प्रभाचन्द्र कुमार कवि ब्रह्म जिनदास पद्यकीति सोमदेव संघारू कवि अपना संस्कृत अब भाषा १५७४ १४६० १४११ (रचना कास) उक्त पाण्डुलिपियों के अतिरिक्त भंडार में और भी अज्ञात, प्राचीन एवं अप्रकाशित रचनाएं हैं। शास्त्र भण्डार अग्रवाल पंचायती मन्दिर कामां इस मन्दिर में ग्रंथों की संख्या अधिक नहीं हैं। पहिले ये सभी ग्रंच खण्डेलवाल पंचायती मन्दिर में ही थे लेकिन करीब ०० वर्ष पूर्व इस मन्दिर में से कुछ पंच अग्रेशल पंचायती मन्दिर में स्थापित कर दिये गये। यही १५ हस्तलिखित ग्रन है। इस भण्डार में सवारू कवि कृत एक प्रद्य म्न चरित की भी पपडुलिपि है। जिसमें उसका रचना काल सं० १३११ दिया हुमा है। किन्तु यह प्रति अपूर्ण है। इसी भण्डार में नवलराम कूत पर्द्धमान पुराण भाषा की पाण्डुलिपि है जो प्रथम बार उपलब्ध हुई है। इसका रचना काल सं० १६११ है। शास्त्र भण्डार दि० जन मन्दिर पाश्वताय टोपारायसिंह टोडारायसिंह का प्राचीन नाम तक्षकगढ था । अन प्रयों को प्रशस्तियों, शिलालेखों एवं मूर्ति लेखों में तक्षकगढ का काफी नाम प्राता है । इसकी स्थापना नागाओं ने की थी तथा १५ वीं शताब्दी लक यह प्रदेश उदयपुर के महाराखाओं के अधीन रहा । जैन धर्म एवं साहित्य का ताकगढ से काफी सम्बन्ध रहा। बिजोलिया के एक लेख में वर्णन पाता है कि टोडामगर में राजा तक्षक के पूर्वजों ने एक जैन मन्दिर बनाया था 1 जब से यह नगर सालंकी वंशी राजपूतों के अधीन हुना बस उसी समय से जैन साहित्य के विकास में इन राजारों का काफी योगदान रहा । महागजा रामचन्द्र राव के शासनकाल में यहां बहुत से प्रयों को प्रतिलिपियां सम्पन्न हुई। इनमें उपसकाध्ययन, गायकुमार परिज (सं० १६१२). यशोधर चरित्र (सं० १५५५) जम्बूस्वामी जरिउ (सं० १६१०) आदि नयों के नाम उल्लेखनीय हैं। यहां दो मन्दिरों में हस्तलिखित 'थों का संग्रह मिलता है। जिनका परिचय निम्न प्रकार है शास्त्र भण्डार दि० जैन मन्दिर नेमिनाथ टोडारायसिंह नेमिनाय स्वामी के मन्दिर के शास्त्रमण्डार में २१६ हस्तलिखित प्रथों का संग्रह है। इस अण्डार में सबसे प्राचीन पाण्डलिपि त्रिलोकसार टीका माश्रवचन्द्र वैद्य की है जो सं० १५८८ सावण सुमी १४ की लिखी हुई है एक प्रवचनसार की संस्कृत टीका है जो सं० १६०५ की है। इनके अतिरिक्त चौबीस तीर्थ करपूजा (देवीदास), प्रास्रवत्रिभंगी टीका (पं० सोमदेव), गुणस्थान चौपई (१० जिनदास) रविवसकथा (विद्यासागर) आदि प्रमों की पाण्डुलिपियां भी उल्लेखनीय हैं । भण्डार में ऐसी कितनी ही रचन जिनकी लिपि तक्षकपुर । (टोडारायसिंह) में हुई थी। इससे इस नगर की सांस्कृतिक महत्ता का स्वतःही पता चल जाता है।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy