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________________ १०६८ ] [ ग्रन्थ सूची-पंचम माग अन्तिम हंसा दुर्लभी हो मुकति सरोबर तीर । इन्द्रिय बाहियाउहो पोक्त विषयह' नीर ।। अति विषयनीर पियारा लागी बिरह वेदन व्याकुले । बारह प्रेक्षा सुरति छाडी एम भूलो घायले । अब होउ एतनु फहक तेता बुद्ध बंसद जम्मण । संज्ञा समरणउ आप सरनाउ परम रयनत्तय गुणु ।।१२।। इति द्वादशानुप्रेक्षा समापिता । प्रादिनाथ स्तुति बिनोदीलाल हिन्दी खिचरी कमलकीति प्रारम्भ संजम की प्रभु सेज मंगाऊ स्यावाद को गदुवा । पानी हो जिन पानी मंगऊ चरचा चौविध संघकी। प्रारज जाय अजवाइन लाई, पीपर कोमल जावरी । धनिया हो जिन पद को लाइ मूढ महामद छांडिये । श्रीरज को प्रभु जीरो लाई सन्त्र यिसयारसु चेक्षणा । सुकल ध्यान की सूठ मंगा कर्मकांड ईधनु परणे । हिन्दी अन्तिम श्री आदिनाथ जिनराज" "श्रावग हो तहां चतूर सूजान । धर्म ध्यान गण आगरी कीजे............. परमारथि जानि । यह विनती जिनराज की चहूँ संघ के.......... 'कल्याण । थी कमल कोति मुनिहर कही.... इति खिचरी समाप्ता सोलहसती की सिझाय प्रेमचंद क्षेत्रपाल गीत सोभाचंद भक्तामर स्तोत्र भाषा हेमराज ले०काल सं. १८२८ बैशाख वद्रो विशेष-जतीमान सागर ने जती सेवाराम के पठनार्थ पिंगोरा में प्रतिलिपि की थी। श्री महावीर जी के प्रसाद से । गणपति स्तोत्र संस्कृत बारहखड़ी सुदामा हिन्दी वीर परिवार स्थूल भट मिझाय गुरगवर्द्धन गरि पत्राजी की बीनती
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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