SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुटका संग्रह ] [१०६७ अन्तिम महमद कहै वस्त्र बहरीयो जो कोई प्राव रे साथ । मापनो लोभनी वाहिते लेखो साहिन हाथ ॥७०।। भूल्यो कल्याण मंदिर स्तोत्र कुमुदचन्द्र भक्तामर स्तोत्र मानतुगाचार्य, कलियुग की कथा प्रारती दीपचंद चौबीस तीर्थंकर प्रारती मोतीराम वराग्य षोडश धानवराय चौबीस तीर्थकर स्तुति उदर गीत छीहल आदिनाथ स्तुति अचलकीति अनुप्रेक्षा नेमिराजुल गीत गुरगचन्द्र प्रारम्भ के ७ पद्य नहीं हैं । ८ यां पद्य निम्न प्रकार है प्रवधू प्रारम मंजन साला हरि गवे खेलत संग जिन राय रे । करजु गह्यो प्रभु नेम को हरि करि प्रगुलि लपटाई हो ।। देव तहां जप जप कर बाजे दुंदुभिनाद रे । पुष्प वृष्टितहां प्रति भई बिलख भई कर वाहुरे ।। अन्तिम पुर सुलताप सुहावरणी जहां बस सराबग लोगजी। पुर परियन मानन्ध स्यों कर है विविधरस भोगी जी ।।७१॥ फाटा संघ सुहावरणा मथुरा गच्छ अनूपरे । शीलचन्द्र मुनि जानिये सब जतियन सिर भूपजी ।।७२।। तासु पट जस कौति मुनि काटा संघ सिंगार रे । तासु शिस गुणवंद मुनि विद्या गुणह भंडारू रे ॥७३॥ मन वच क.या मावस्यों पढहि सूनहि नर नारि रे। रिद्धि सिद्धि सून संपदा तिन चरणन पर वारि रे ।।७४।। इस से प्रागे के पद नहीं हैं। द्वादशानुप्रेक्षा सूरत हिन्दी
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy