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गुटका संग्रह )
दोहा
सहसत संबद्ध सरस चतुरश्रमिक कातिक सुदि विधि अष्टमी वार सर सांगानेर सुमान में रामसिंह सहा कविजन बचपन में राजति सभा समाज ॥६३॥ गंगाराम वह सरख कार्य कोनो बुधि प्रकास । श्री भगवंत प्रसाद तें इह सुभ सभा विलास ||६४ ।।
नृपराज ।
इति सभा शृंगार प्रथ संपूरन ।
चालीस | रजनीस ॥६२॥
प्राप्ति स्थान – दि० जैन पंचायती मन्दिर भरतपुर 1
१८०२. गुटका सं० १ पत्र सं० १२-१४३ भाषा - हिन्दी वेष्टन सं० ३३४ |
विशेष—दों का संग्रह है मुख्यतः जग्गाराम के पद है अंत में हरचंद संधी कृत चौपोस महाराज की बीनती है।
प्रातम
आलम बिन सुख और कहा रे।
कोटि उपाय करौ किन कोउ, विन ग्यानी नहीं जात लहारे ।
ले०का X। पू
भव विरकत जोगी सुर हैंगें, जिहि थिरवि चिराचिर हारे । बरतन करि कहो कैसे कहिये, जिसका रूप अनुपम हारे । जिहिं दे पाये दिन संसारी, जग अन्दर निचि जात बहारे । जिहि देवल करके पांडव ने घोर तपस्या सकल सहारे । जिहि दे भाव रथ उर कोना, जो पर सेती नांहि फस्यारे । को दीप नर तेही धन्य है जिस दानी सदा रूप चहारे । प्रातम ||
२. तपोधोतक सत्तावनी, द्वादशानुप्रेक्षा,
पंच मंगल
[ १०४९
९८०३. गुटका सं० २ । प० ४३ । भाषा प्राकृत - हिन्दी । ले० काल x वेन सं० ३०६ ।
विशेष – निम्न पाठ हैं ।
१. द्रव्य संग्रह हिन्दी टीका सहिद
टीकाकार वंशीधर है !
। पूखे ।
९८०४. गुटका सं० ३ पत्रसं० ७६ भाषा संस्कृत ले० काल सं० १९०७ पूर्ण वेष्टन सं० २०४
विशेष- नित्य नैमित्तिक ५२ पूजाओं का संग्रह है । इनमें नवसेना विधान, दस दान, मतमंतार दर्शनाष्टक आदि भी हैं।