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________________ गुटका संग्रह ] [ ७१ सर्वसुख हुइ दूरणइ भणइ, नर नारी जेई दूगुणइ । तेह घरि लखमी सदाइ भयइ, चंद सुरज जां निर्मल तप ।।३११॥ ए मंगल एहज कल्याण, भगउ भणयह जा ससि भारत । रस्मडना चारित्रसार, श्री संघनइ करत जय जयकार ॥३१२॥ इति श्री रत्न यूजरास समाप्तं । मिति बैशाख वदि ४ संवत् १८१७ का। वीर मध्ये पठनार्थ चिरंजीवि पंडित सदाईराम ॥ सुवा बहत्तरो (बेष्टन सं० ८६३) सुवा बहतरी की कथा लिख्यते करि प्रणाम श्री सारदा, पापणी बुद्धि परमाण । सुक सप्तिक वार्तिक करी, नाई ते देवीदान ।।१।। बीकानेर सुहावनी सुम्त संपति की दोर । हिंदुधानि हिन्दु घरम, ऐसो सहर न और ॥२॥ तिहां तपै राजा करण, जंगल को पतिसाह । सायं कुचर अनुपसिंह, दाता सूर सुबाह ।।३।। तिन मोकी प्राज्ञा दई सुयमन्न होइ के एहु । संस्कृत हुंती वातिक सुक सप्तति करि देहु ।।४।। अथ कथा प्रारम्भ एक मेदुपुर नाम नगर । थि हरदत्तवाणियो बस । ते पैरे परि मदन सुन्दरी स्त्री अरु मदन बेटो। ती पैरे सोमदत्त साहरी चेटी प्रभावती नाम । सोमदत्त यापकी स्त्री प्रभावती सेती लागो रहै। माता पितारो कहियो म करें । साउ राज वै मदन - देसान ताई हरिदल एक सुवो एक सारिका मंगाई। सो पुष्पा गंधर्व रो जीव धणीरा सराय हुंनी सुवो । हुवो अर मालती गवरणी रो जीव धीरां सराय हुंती सारिका हुई। सो जुदै जुदै पिंजरे रहै। एक दिन मदन रोपार देखि शुक्र अरु सरिका मदन भाग बात कहै छ। दोहा जो दुख माल पिता तवो अथ बात जो हो । तिस पाप करता हरि देह सपछानि हो । बात मदन पूछियौ वार्ता अपूर्ण है-१२ वी बात तक पूर्ण है १३ वीं बात बहोडि तेरमै दिन प्रभावती शृगार करि रावि समै सुवानुपूछीयो थे कहो तो जावो, सुवै कह्यो ।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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