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________________ १७० ] [ ग्रन्थ सूची-पंचम भाग पोह मिंदर पोलि पगार, झार श्रोण नवि लाभइ पार । चिसह रमण हर तोरणमाल, लंबानी परिझाक झमाल ॥५॥ चउरासी चउटा अतिचंग, नव नव उछा भय नवरग । कोटिधज दीसह अति घरपा, बालेसरी नीन राही का मरणा ॥६॥ मांडइ दोसी भविका पट्ट, भराया दीस सोनी दट्ट। माणिक चउक जब वहरी रह्मा, हीरइ माणिक मोती सह्या ।।७।। मुद दीया फोफलीया सोनार, नाई तेली न लहु पार । संबोली मरदठ घविटि, एक माडइनी सत फडट्टा ॥ मध्य भाग-- हाथ घलाविउमाली पाहि. वल तउ कहि काइ छइ माहि। माहाराज सीभलिज्यो तम्हे, कुमर कहइ असशमरण अम्हे ।।२८२॥ माली पीछवीउते तलइ, सूत्रधार प्राविस ते तलइ । कुमर कहिय अम्हे मालिउसु गाभि, कली पाइ थाउ भाइ कामि ॥२८३।। अन्तिम भाग-- नगर मांहि न्याय अरज हु, होटा लोक ते साचु थयउ । करी सजाइ पाले वाभरणी, हुई वाहण मणी पुराणी । यम घंटा मोकला बीकरी, बाल कुमर सबाहशज भरी । चाल्या बाहरण वायतइ भांगि, खेम कुसल पहुंता निर्वाणि । वाहण वस्तु उतारी घणी, छाधीसकोडि हिब ट्रव्यह तणी। हीर वीर धन सोवन वहु, साध्य लखिउ रण घंटा बहु । रण घटा नइ सुहग मंजरी, प्रामइ पररावइ रत्न सुन्दरी। नब नच उछन नव नव रंग, भोग भोग व अतिह सुचग । तिरण नगरी प्राध्या केवली, तिहां वाद संघ सर्व मिली। मणिचूड तिहां पूछा सिउ, कहउ वेटा नउ करम हई किस। रतननूड भउ संचल उ विचार, पात्र दान दीघउ तिणिवार । दान प्रभावह एब जि रिधि, दान प्रभावइ पामीइय सर्वसिधि ।।३०७।। दानसील तप भावन सार, दान सराउ उत्तम विस्तार । दानइ जस कीरति विस्तरइ, दान दीयता दुरत भरइ ।।३०८।। पनरइ एकोतरह नीयनृ संबंध, रत्नचूड नउ ए संबंध । बहुल वीज, भाइ वह रनी, कवित नीयनु भगुरेवती ॥३०६।। बड तप मच्छ रत्न सूरिंद उदभत कला अभिनउच'द । तास सेवइक इम उभरइ, षट् प द चरण कमल अरणसर६ ।।३१०॥
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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