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गुटका संग्रह ]
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अंबू द्वीप सुहावरणी, महिघर मेर उत्तंग । जहिये दक्षिण दिसा भली भरय क्षेत्र सुचंग ।।२।। मगर निरोपम तिहां बसे कललीपुर विरक्षात । देखी राजा नट नुपण, किती कहं अवदात ।।३।।
मध्य भाग
कोई नर एक जिमावं जाति, सह कोई वसे एकरिण पांति । परूसण हारी ब्यौरा कर, तिहकै पाय सूर्य थर हरै।।११३।। सांचा मासास नै देह पाल, माथे मारं नान्हा बाल , सासू सूसरा नै जो दमै, सा नारी बागुलि होइ भमै ॥११४॥ घरि पावै चो निरचन परणी, चिरान दो लन्न स्वामी तणी।। सूख हर्ष दुखे संताप, रति लाग तिह नौ पाप ।।११५॥
अन्तिम पाठ
इहां थे मरि कहां जाइसी. त्यो भांजै सन्देह । केवली भाषा संभली, हां थे मरि सब बह ॥२४७।। जप तप संजम प्रादरौं टाल्यौ भयं दुख । मुक्ति मनोरथ पामिसौ, लहसी पहला सुख ।।२४८।। संवत सोलसै तेसद चैत्रसुदि रविवार । नबमी दिन भला भावस्यो रास रच्यो सुविचार ।।२४६।। बीजागछ मांडण पवर पास सूर देवराज । श्री धननंदन दिन दिने, देड यासीस सुकाज ।।२५०।।
इति मृगी संवाद कथा समाप्तं ।। संवत् १७२३ का वर्षे मिलि बदि ५ शूकबार लिखितं पांडे वीरू कालाबहरामध्ये ।
घसुधरि चरित्र (वेष्टन सं० ५६८) मादि भागॐनमो वीतरागाय नमः दोहडा--
सारद सामरिण गाय नमो गणपति लागो पाय । कहिसि कथा रलियावरणी, गोतम तणा पसाय ॥११॥ जंब्रदीप राहावणी, लख जोजन थिसतार । मध्य सुदरसरण मेर है, दिखा दिसा सूखसार ।।२।। भरतक्षेत्र जन भर तहां दिखा देस सुषिसाल । वन वापी जिन भवन यति, नदी तीर सुभताल ||३|| कुसम नगर अति सोभतो कोट उतंग प्राबास । बाग बाप बहु बावडी तहां भोगी लील विलास ॥४॥