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३. एक हजार से कम एवं पांचसौ से अधिक ग्रंथ वाले शास्त्र भंडार ४. पांचसौ प्रथों से कम वाले शास्त्र भंडार
इन शास्त्र भंडारों में केवल धार्मिक सहित्य ही उपलब्ध नहीं होता किन्तु काव्य, पुराण, ज्योतिष, आयुर्वेद, गणित आदि विषयों पर भी प्रध मिलते है । प्रत्येक मानव की संचि के विषय, कथा कहानी एवं नाटक भी इनमें अच्छी संख्या में उपलब्ध होते हैं । यही नहीं, सामाजिक राजनीतिक एवं अर्थशास्त्र पर भी ग्रंथों का संग्रह मिलता है। कुछ भंडारों में जैनेतर विद्वानों द्वारा लिखे हुये अलभ्य ग्रंथ भी संग्रहीत किये हुये मिलते हैं। वे शास्त्र भंडार खोज करने वाले विद्यार्थियों के लिये शोध संस्थान हैं लेकिन भंडारों में साहित्य की इतनी अमूल्य सम्पत्ति होते हुये भी कुछ वर्षों पूर्व तक ये विद्वानो के पहुँच के बाहर रहे । अब कुछ समय बदला है और भंडारों के व्यवस्थापक ग्रंथों के दिग्बलाने में उतनी आनाकानी नहीं करते हैं । यह परिवर्तन यास्तव में खोज में लीन विद्वानों के लिये शुभ है। आज के २८ वर्ष पूर्व तक राजस्थान के ६ प्रतिशत भंडारों को न तो किसी जैन विद्वान ने देखा और न किसी जैनेतर विद्वान ने इन भंडारों के महत्व को जानने का प्रयास ही किया । अब गत १०, १५ वर्षों से इधर कुछ विद्वानों का ध्यान आकृष्ट हुआ है और सर्व प्रथम हमने राजस्थान के ७५ के करीब भंडारों को देखा है और शेष भंडारों को देखने की योजना बनाई जा चुकी है।
ये ग्रंथ भंडार प्राचीन युग में पुस्तकालयों का काम भी देते थे। इनमें बैठ कर स्वाध्याय प्रेमी शास्त्रों का अध्ययन किया करते थे। उस समय इन ग्रंथों की सूचियां भी उपलब्ध हुश्रा करती थी तथा ये ग्रंथ लकड़ी के पुट्ठों के बीच में रखकर सूत अथवा सिल्क के फीतों से बांधे जाते थे। फिर उन्हें कपड़े के वेष्टनों में बांध दिया जाता था। इस प्रकार ग्रंथों के वैज्ञानिक रीति से रखे जाने के कारण इन भंडारों में ११ वीं शताब्दी तक के लिखे हुये मंथ पाये जाते हैं।
जैसा कि पहिले कहा जा चुका है कि वे ग्रंथ भंडार नगर कस्बे एवं गांवों तक में पाये जाते हैं इसलिये राजस्थान में उनकी वास्तविक संख्या कितनी है इसका पता लगाना कटिन है । फिर भी यहां अनुमानतः छोटे बड़े २०० भंडार होंगे जिनमें १११, २ लाख से अधिक हस्तलिखित ग्रंथों का संग्रह है।
जयपुर प्रारम्भ से ही जैन संस्कृति एवं साहित्य का केन्द्र रहा है। यहाँ १५० से भी अधिक जिन मंदिर एवं चैत्यालय हैं । इस नगर की स्थापना संवत् १७८४ में महाराजा सवाई जयसिंहजी द्वारा क्री गई थी तथा उसी समय आमेर के बजाय जयपुर को राजधानी बनाया गया था। महाराजा ने इसे साहित्य एवं कला का भी केन्द्र बनाया तथा एक राज्यकीय पोथीखाने की स्थापना की जिसमें भारत के विभिन्न स्थानों से लाये गये सैकड़ों महत्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहीत किये हुये हैं। यहां के महाराजा प्रतापसिंहजी भी विद्वान् थे । इन्होंने कितने ही ग्रंथ लिखे थे । इनका लिखा हुआ एक ग्रंथ संगीतसार जयपुर के बड़े मन्दिर के शास्त्र भंडार में संग्रहीत है।