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________________ १८ वीं एवं १६वीं शताब्दी में जयपुर में अनेक उच्च कोटि के विद्वान् हुये जिन्होंने साहित्य की अपार सेवा की। इनमें दौलतराम कासलीवाल ( १८ वीं शताब्दी ) टोडरमल (१८ वीं शताब्दी ) गुमानीराम (१८, १६ वीं शताब्दी) टेकचन्ड (१८ वी शताब्दी) दीपचन्द्र कासलीवाल (१८ वीं शताब्दी) चन्द्र घांघड़ा ( १६ वी शताब्दी ) केशरीसिंह ( १६ वीं शताब्दी) नेमिचन्द पाटनी (१६ वीं शताब्दी नन्दलाल छाबड़ा] ( १६ वीं शताब्दी) स्वरूपचन्द्र बिलाला ( १६ वीं शताब्दी) सदासुख कासलीवाल (१ वीं शताब्दी ) मन्नालाल सिन्दूका (१६ वीं शताब्दी) पारसदास निगोल्या ( १६ वीं शताब्दी ) जैतराम (१६ वीं शताब्दी ) पन्नालाल चौधरी ( १६ वीं शताब्दी ) दुलीचन्द ( ११ वीं शताब्दी ) आदि विद्वानों के नाम उल्लेखनीय हैं। इनमें अधिकांश हिन्दी के विद्वान थे। इन्होंने हिन्दी के प्रचार के लिये सैकड़ों प्राकृत एवं संस्कृत प्रथों पर भाषा टीका शिखी थी। इन विद्वानों ने जयपुर में ग्रथ भन्डारों की स्थापना की तथा उनमें प्राचीन ग्रंथों की लिपियां करके विराजमान की। इन विद्वानों के अतिरिक्त यहां सैकड़ों लिपिकार हुये जिन्होंने श्रावकों के अनुरोध पर सैकड़ों मन्थों की लिपियां की तथा नगर के विभिन्न भन्डारों में रखी गईं । : ग्रंथ सूची के इस भाग में जयपुर के १२ शास्त्र भंडारों के प्रथों का विवरण दिया गया है ये सभी शास्त्र भंडार यहां के प्रमुख शास्त्र भंडार है और इनमें दस हजार से भी अधिक ग्रथों का संग्रह है । महत्वपूर्ण ग्रंथों के संग्रह की दृष्टि से अ, ज तथा ा भन्डार प्रमुख हैं । प्रथ सूची में आये हुये इन भंडारों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है । १. शास्त्र भंडार दि ० जैन मन्दिर पाटोदी ( अ भंडार ) यह भंडार दि० जैन पाटोदी के मंदिर में स्थित है जो जयपुर की चौकड़ी मोदीखाना में है । यह मन्दिर जयपुर का प्रसिद्ध जैन पंचायती मन्दिर है। इसका प्रारम्भ में आदिनाथ चैत्यालय' भी नाम था। लेकिन बाद में यह पाटोदी का मन्दिर के नाम से ही कहलाया जाने लगा। इस मन्दिर का निर्माण जोधराज पाटोदी द्वारा कराया गया था। लेकिन मन्दिर के निर्माण की निश्चित तिथि का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। फिर भी यह अवश्य कहा जा सकता है कि इसका निर्माण जयपुर नगर की स्थापना के साथ "साथ हुआ था। मन्दिर निर्माण के पश्चात् यहां शास्त्र भंडार की स्थापना हुई। इसलिये यह शास्त्र भंडार २०० वर्ष से भी अधिक पुराना है । मन्दिर प्रारम्भ से ही भट्टारकों का केन्द्र बना रहा तथा आमेर के भट्टारक भी यहीं आकर रहने लगे | भट्टारक क्षेमेन्द्रकीति सुरेन्द्रकीति, सुखेन्द्रकीति एवं नरेन्द्रकीत्ति का क्रमश: संवत् १८१५, १. देखिये सब सूची पृष्ठ संख्या १६६ व ४६०
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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