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________________ भस्तावना राजस्थान शताब्दियों से साहित्यिक क्षेत्र रहा है। राजस्थान की रियासतें यद्यपि विभिन्न राजाओं के अधीन थी जो आपस में भी लड़ा करती थीं फिर भी इन राज्यों पर देहली का सीधा सम्पर्क नहीं रहने के कारण यहां अधिक राजनीतिक उथल पुथल नहीं हुई और सामान्यतः यहां शान्ति एवं व्यवस्था बनी रही। यहां राजा महाराजा भी अपनी प्रजा के सभी धर्मों का समादर करते रहे इसलिये उनके शासन में सभी धर्मों को स्वतन्त्रता प्राप्त थी । जैन धर्मानुयायी सदैव शान्तिप्रिय रहे हैं। इनका राजस्थान के सभी राज्यों में तथा विशेषतः जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, उदयपुर, बूंदी, कोटा, अलवर, भरतपुर आदि राज्यों में पूर्ण प्रभुत्व रहा। शताब्दियों तक वहां के शासन पर उनका अधिकार रहा और वे अपनी स्वामिभक्ति, शासनदक्षता एवं सेवा के कारण सर्द ही शासन के सर्वोच्च स्थानों पर कार्य करते रहे । प्राचीन साहित्य की सुरक्षा एवं नवीन साहित्य के निर्माण के लिये भी राजस्थान का यातावरण जैनों के लिये बहुत ही उपयुक्त सिद्ध हुआ। यहां के शासकों ने एवं समाज के सभी वर्गों ने उस ओर बहुत ही रुचि दिखलायी इसलिये सैंकड़ों की संख्या में नये नये ग्रंथ तैयार किये गये तथा हजारों प्राचीन ग्रंथों की प्रतिलिपियां तैयार करया कर उन्हे नष्ट होने से बचाया गया । आज भी हस्तलिखित ग्रंथों का जितना सुन्दर संग्रह नागौर, बीकानेर, जैसलमेर, अजमेर, आमेर, जयपुर, उदयपुर, ऋषभदेव के ग्रंथ भंडारों में मिलता है उतना महत्वपूर्ण संग्रह भारत के बहुत कम भंडारों में मिलेगा। ताड़पत्र एवं कागज दोनो पर लिखी हुई सबसे प्राचीन प्रतियां इन्हों भंडारों में उपलब्ध होती हैं। यही नहीं अपभ्रंश, हिन्दी तथा राजस्थानी भाषा का अधिकांश साहित्य इन्हीं भन्डारों में संग्रहीत किया हुआ है। अपभ्रंश साहित्य के संग्रह की दृष्टि से नागौर एवं जयपुर के भन्डार उल्लेखनीय हैं । अजमेर, नागौर, आमेर, उदयपुर, डूंगरपुर एवं ऋषभदेव के भंडार भट्टारकों की साहित्यिक गतिविधियों के केन्द्र रहे हैं। ये भट्टारक केवल धार्मिक नेता ही नहीं थे किन्तु इनकी साहित्य रचना एवं उनकी सुरक्षा में भी पूरा हाथ था। ये स्थान स्थान पर भ्रमण करते थे और वहां से प्रन्थों को बटोर कर इनको अपने मुख्य मुख्य स्थानों पर संग्रह किया करते 1 शास्त्र भंडार सभी आकार के हैं कोई छोटा है तो कोई बड़ा । किसी में केवल स्वाध्याय में काम आने वाले ग्रंथ ही संग्रहीत किये हुये होते हैं तो किसी किसी में सब तरह का साहित्य मिलता है । साधारणतः हम इन ग्रंथ भंडारों को १ श्रेणियों में बांट सकते हैं । १. पांच हजार प्रथों के संग्रह वाले शास्त्र भंडार २. पांच हजार से कम एवं एक हजार से अधिक मंथ वाले शास्त्र भंडार
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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