________________
७७० ]
[ गुटका-संग्रह ६०५३. गुटका सं० = | पत्र सं. ८६ | प्रा. ६X इ. | ले. काल सं० १७७६ श्रावण बुरी 1
पूर्ण । वे. सं० १५०८ ।
पृथ्वीराज राठौर
राजस्मानी डिंगल
१-
१. कृष्णरुक्मणि वेलि
५
र० काल• सं०१६३७ ।
विशेष—थ हिन्दी मर टीका सहित है। पहिले हिन्दी पद्य हैं फिर गद्य टीका दी गई है।
हिन्दी
चतुर्भुज
२. विषाणु पंजर रक्षा
संस्कृत ३. भजन (गढ का कैसे लीजे रे भाई) x ४. पद-(बैठे नव निकुज कुटीर) ५. , (धुनिसृनि मुरली बन बाजे) हरीदास
( सुन्दर सांबरो प्रावै चल्यो सखी) मंददास ७. , ( बालगोपाल छैगन मेरे ) परमानन्द ८, ( बन ते प्रावत गावत गौरी) x
६०५४. गुटका सं. ६ | पत्र सं० ८५ । आ. exs इ० । भाषा-हिन्दी | ले. काल X । पूर्ण । ० सं० १५० ।
विशेष-केवल कृष्णस्वमगी वेलि पृथ्वीराज राठौर नृत है। प्रति हिन्दी टीका सहित है। टीकाकार अशात है। गुटका सं०८ में पाई हुई टीका से भिन्न है। टीका काल नहीं दिया है।
६०५५. गुटका सं०१० । पत्र सं० १७०-२०२ । प्रा०६४७ इ. | भापा-हिन्दी। ले. काल | अपूर्ण । वे सं० १५११ । १. कवित्त
राजस्थानी डिंगल विशेष-शृङ्गार रस के सुन्दर कवित्त हैं । विरहिनी का वर्णन है। इसमें एक कवित्त छोहल का भी है । २. श्रीरुकमणिकृष्णाजी को रासो
तिपरदास
राजस्थानी पद्य १७३-१८५ विशेष--इति श्री रुकमणी कृष्णजी को रासी तिपरदास कृत संपूर्ण ॥ संवत् १७३६ वर्षे प्रथम चैत्र मासे शुभ शुक्ल पक्षे तिथौ ददाम्या बुधवासरे श्री मुकन्दपुर मध्ये लिहापितं साह सजन कोष्ठ साह लूणाजी तत्पुत्र सजन साह श्रेष्ठ दाजूजी वाचनाय । लिखतं व्यास जटना नाम्ना। ३ कवित्त
हिन्दी
१८६-२०२ विशेष-भूधरदास, सुखराम, विहारो तथा केशवदास के कवित्तों का संग्रह है। ४७ कवित्त हैं।
राजस्था