SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 832
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६८ ] ३. सतसई विशेष प्रारम्भ के १२ दोहे नहीं हैं। कुल ७१० दोहे हैं । ४. वैद्यमनोत्सव १५०५ । नयनसुख अपूर्ण १७-११८ ६०४६. गुटका सं० ४ । पत्र सं० २५ । भाषा-संस्कृत विषय नीति । ले० काल सं० १८३९ पौष सुदी ७ । पूर्ण । जे० सं० १५०४ । विशेष- चाणक्य नीति का वर्णन है । श्रीचन्दजी गंगवाल के पठनार्थ जयपुर में प्रतिलिपि की थी । ६०५०. गुटका सं० ५ पत्र सं० ४० | भाषा - हिन्दी । ले० काल सं० १८३१ । अपूर्ण वे० सं० म्हारा रेबेरागी जोगी जोगणि संग न छाडे जी । मानसरोवर मनस भुलती प्रावे गगन मह मंड मारजी ॥ बिहारीलाल हिन्दी अपूर्ण ले० काल सं० १७२५ माघ सुदी २ । विशेष- विभिन्न कवियों के शृङ्गार के अनूठे कवित्त है । ६०५१. गुटका सं० ६ । पत्र सं ले० काल सं० १७६८ कार्तिक सुदी ६ । पूर्ण । वै० सं० १५०६ । वैशाख बुदी १. कवित्त [ गुटका संच निम्न प्रकार है 33 ३-६५ विशेष- सुन्दरदास कृत सुन्दरङ्गार है। श्रेयदास गोधा मालपुरा वाले ने प्रतिलिपि की थी। ६०५२. गुटका सं० ७ । पत्र सं० ४५ | मा० ६७३६० । भाषा - हिन्दी । ले० काल सं० २०३१ पूर्ण । वे० सं० १५०७ । ० ६४० भाषा हिन्दी २० का ० १६८८ श्रांधी बांटे जेवरी पाछे बरा खाय । पायें बछरा खाय कहत गुरु सीख न माने । ग्यान पुन मसान छिनक मैं घरम मुलाने || करो विप्रलो रीत मृतग धन लेत न लाजे । नीच न समझे मीच परत विषया के कार्ज । अगर जीव श्रादि ते यह बंध्योस करें उपाय ! आधी बोटे जेवरी पाछे बछरा खाय ॥१०॥ अमर (अग्रदास ) हिन्दी पूर्ण १-१० विशेष — कुल ६३ पद्य हैं पर प्रारम्भ के ७ पच नहीं है । इनका छन्द कुण्डलिया सा लगता है एक छन्द '
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy