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३. सतसई
विशेष प्रारम्भ के १२ दोहे नहीं हैं। कुल ७१० दोहे हैं ।
४. वैद्यमनोत्सव
१५०५ ।
नयनसुख
अपूर्ण १७-११८
६०४६. गुटका सं० ४ । पत्र सं० २५ । भाषा-संस्कृत विषय नीति । ले० काल सं० १८३९ पौष सुदी ७ । पूर्ण । जे० सं० १५०४ ।
विशेष- चाणक्य नीति का वर्णन है । श्रीचन्दजी गंगवाल के पठनार्थ जयपुर में प्रतिलिपि की थी । ६०५०. गुटका सं० ५ पत्र सं० ४० | भाषा - हिन्दी । ले० काल सं० १८३१ । अपूर्ण वे० सं०
म्हारा रेबेरागी जोगी जोगणि संग न छाडे जी । मानसरोवर मनस भुलती प्रावे गगन मह मंड मारजी ॥ बिहारीलाल
हिन्दी
अपूर्ण
ले० काल सं० १७२५ माघ सुदी २ ।
विशेष- विभिन्न कवियों के शृङ्गार के अनूठे कवित्त है । ६०५१. गुटका सं० ६ । पत्र सं
ले० काल सं० १७६८ कार्तिक सुदी ६ । पूर्ण । वै० सं० १५०६ ।
वैशाख बुदी १. कवित्त
[ गुटका संच
निम्न प्रकार है
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३-६५
विशेष- सुन्दरदास कृत सुन्दरङ्गार है। श्रेयदास गोधा मालपुरा वाले ने प्रतिलिपि की थी। ६०५२. गुटका सं० ७ । पत्र सं० ४५ | मा० ६७३६० । भाषा - हिन्दी । ले० काल सं० २०३१
पूर्ण । वे० सं० १५०७ ।
० ६४० भाषा हिन्दी २० का ० १६८८
श्रांधी बांटे जेवरी पाछे बरा खाय । पायें बछरा खाय कहत गुरु सीख न माने ।
ग्यान पुन मसान छिनक मैं घरम मुलाने || करो विप्रलो रीत मृतग धन लेत न लाजे । नीच न समझे मीच परत विषया के कार्ज । अगर जीव श्रादि ते यह बंध्योस करें उपाय ! आधी बोटे जेवरी पाछे बछरा खाय ॥१०॥
अमर (अग्रदास )
हिन्दी
पूर्ण १-१० विशेष — कुल ६३ पद्य हैं पर प्रारम्भ के ७ पच नहीं है । इनका छन्द कुण्डलिया सा लगता है एक छन्द
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