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________________ गुटका-संग्रह ] ४१-४३ ३. कवित्त ४. मोजरासो उदयभानु प्रारम्भ श्री गणेसाय नमः । दोहरा । कुजर कर कुबर करन कुंजर आनंद देव । सिधि समपन सप्त सूब सुरनर कीजिय सेव ॥१॥ जगत जननि जग उछरल जगत ईस भरधंग । मौन विचित्र निराजकर हंसासन सरवंग ।। २ ।। सूर शिरोमणि सूर सुत सूर टरै नहि मान । जहां तहां सूबन सुम जिये तहां भूपति भोज वखाम ।।३।। अन्तिम-इति श्री भोजजी को रासो उदेभानजी को फियो । लिखतं स्वामी खेमदास मिती फागुण बुदी ११ संपत् १७६५ । इसमें फुल १४ पद्य है जिनमें भोजराज का वैभव व यश वर्णन किया गया है । ५. कवित टोडर हिन्दी कवित्त है ४६-४ विशेष-ये महाराज टोडरमल के नाम से प्रसिद्ध थे और मकघर के भूमिकर विभाग के मंत्री थे। ६०४८. गुटका सं०३ । पत्र सं० ११८ | भाषा-हिन्दी । ले. काल सं० १७२६ । मपूर्ण । वे. सं० १. मायाब्रह्म का विचार हिन्दी गद्य अपूर्ण विशेष-प्रारराम के कई पत्र फटे हये हैं गद्य का नमूना इस प्रकार है। "माया काहे ते कहिये वभस्यो सबल है तातै माया कहिये । भकास काहे त कहिये पिंड ब्रह्मांड का भादि प्राकार है तातै प्राकास कहीये । सुनी ( शून्य) काहे ते कहीये-जड है तातै सुनी कहिये | सकती काहे ते कहिये सकल संसार को जीति रही है ताले सकती कहिये।" अन्तिम-एता माया ब्रह्म का विचार परम हंस का ग्यान भ जगीस संपूर्ण समाप्ता । श्रीशंकाचारीज वीरच्यते । मिती प्रसाढ सुदी १० सं० १७२६ का मुकाम गुहाटी उर कोस दोह देईदान चारण की पोथीस्य उतारी पोपी सा........म ठोल्या साह नेवसी का बेटा ........कर महाराज श्री रुघनापस्यधजी । २ गोरखपदावली गोरखनाथ अपूर्ण विशेष-करीब ६ पद्य हैं ।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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