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[ गुटका संग्रह
निरमल तिलक सोहम जिन मुख कमल रिसालोजी ।
कानों कुण्डल दीपता भिक मिग झाक ममालोजी || ४ || जे.॥
कठि मनोहर कठिलउ उरि वारि नव सिर हारोजी ।
बहिर खवाहि भला करता भव भव कारोजी ।। ५ ॥ जे."
मरकत मसिा तनु दीपती मोहन सूरति सारोजी।
सुख सोहग पद मिलइ जिरावर माम अपारोजी ॥६॥ जे॥
इन परि पास जिरोसर भेटयउ कुल सिरणगारोजी।
जिरा चन्द्र सूरि पसाउ लइ समयराज गुखकारोजा ।। ७।०।।
॥ इति श्री पार्श्वनाथस्तवन समाप्तोऽवं ॥
५४६८. गुटका सं० ११७ । पत्र सं० ३५० । प्रा० ६.४५ च । भाषा-संस्कृत हिन्दी । अपूर्ण।
दशा सामान्य।
विशेष- विविश्व पालों का संग्रह है। चर्चाएं पूजाएं एवं प्रतिष्ठादि विषयों में संबंधित पाठहै। ५४६६. गुटका सं० ११८ । पत्र सं० १२६ । प्रा० ६४४ च ।
१. शिक्षा चतुष्क
नवलराम
२. श्री जिनवर पद वन्दि केजी
वखतराम
३. प्ररहंत चरमचित लाऊ.
रामकिशन
९-१०
४ चेतन हो तेरे परम निधान
जिनदास
मकलचन्द्र
नस्कृत
५. चैत्यवंदना
पवनंदि
रामचन्द्र
हिन्दी
जगराम
६. करुणाष्टकं ७. पद-माजि दिवसि धान लेखे लेखमा ८, पद-प्रातभयो सुमरि देव ६. पद-सुफलघडीजी प्रभु १०. निर्वागभूमि मंगल
खुशालचन्द्र
विश्वभूषण
संवत् १७२६ में भ्रसार मे ६० केसरीसिंह ने लिखा। हिन्दी
११५-१६ रचना सं.१६३ प्रति लिपि सं०१५३०
हर्षकीति
११. पश्चमगतिवेलि