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________________ [ गुटका-संग्रह मिला। नीरा मिलवा वाला तो संसार में च्यारि और ही छ: जैको बाप विरधा होसी सो बां मिलसी । घर जे को वेटो परदेशा सू' प्रायो होसी सो वां मिजसी । दुसरो सांवण माबधा को मह बरस सी सो समन्दर सू। तीसरो भारगेज को भात पैशबा जामी सोनी मिलसी । चौथा स्त्री पुरुष मिलसी। डोकरी जाण्या हे जमा । भरिया कहे न उजलेउ झलमला ! राणा लागा॥ १० ॥ ॥ इन दोकरी राजा भोज की वार्ता सम्पूर्ण ।। ५४६५. गुटका सं० ११४ 1 पत्र सं०६-७२। मा. ६:४५ इच। विशेष-स्तोत्र एवं पूजा संग्रह है। ५.६६. गुटका सं० ११५ । पत्र सं० १६८ । प्रा०६४५ इंच । भाषा-हिन्दी । अपूर्ण | दशा-सामान्य विरोप-पूजा संग्रह, जिनयज्ञकल्प ( माशावर) एवं स्वयंभूस्तोत्र का संग्रह है। ५५६७. गुटका सं० ११६ । पत्र सं० १६६ । मा ६४५ इव | भाषा-संस्कृत । पूर्ण | दशा-'जीर्ण। निशा-गुटके में निम्न पाठ उल्लेखनीय हैं। ४. भुवनकति भीत बूचराज १२-१४ प्राजि वद्धाउ सुरणहु सहेनी महु मनु सिंघसइ जि महलीए । गोहि अनन्त नित कोटिहि सारिहि गुह गुरु मुहु गुरु वेदहि सुकरि रलीए ।। करि रली बन्दह सखी सुहु गुरु लवधि गोइम सम सरे । जसु देखि दरसरगु टलहि भवदुख होइ नित नवनिधि घरे ।। कार चन्दन अगर केसरि प्राणि भावन भाव ए। श्रीभुवनकीलि चरण प्रणमोह सखी आज बहाव हो ॥१॥ तेरह विधि चारित निपानइ दिनकर दिलकर जिम तपि सोहदए । सर्वामि भासिउ धर्म मूगगाव दापी हो वाणी भवु मन मोहइए। मोहन्ति यागो सवा भदि सुनु ग्रन्थ प्रागम भार,ए। घट द्रव्य मरु पश्चास्तिकाया ससतत्ल फ्यासए । बावीस परिग्रह सहइ अंगहें गरुब मति नित गुणनिधी । श्रीभुवनकाति चरण पणमि सु चारितु तनु तेरह विये ॥ २ ॥ मूल मुरगाहं यहाइसइ धारइए मोहए मीह महाभटु ताडिया ए । रतिपति तिन दंति ह महिउ पा कोवइए कोवरि तिहि रालीयो ए।।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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