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________________ [ गुटका-संग्रह ६६० ] १. पंचमेरुपूजा ( बृहत् ) देवेन्द्रकीति संस्कृत १७०-१८० १८०-६६ ३०, अनन्तपूजा ब्रह्मशांतिदास हिन्दी ३१. गणधरवलयपूजा सुभनन्द्र मम्फल १६६-२११ ३२. पचकल्माणकोद्यापन पूजा भ. ज्ञानभूषण __ अपूर्ण २११-३५ ५४८६. गुरका सं०१८ । पन में०१२० । ग्रा० ५४५ च । भापा-हिन्दी । पूरण : दशा-जीरो । १. जिनसहस्रनामभाषा बनारसीदास हिन्दी २. लघुसहस्रनाम ३. स्तवन संस्कृत अपभ्रंश हिन्दी अपूर्ण २८ है ४. पद मनराम में काल १७३५ यासोज दी । चेतन इह घर नाही तेरो। चटपटादि नैनन गोचर जो, नाटक पुद्गग्न केरौ ।टक ।। तात मात कामनि सुत बंधु, करम बंध को घेरो । करि है गौन ग्रानति को जब, कोई नहीं भावत ने ॥१॥ भ्रमत भ्रमत संसार गहन बन, कोयो प्रानि बसेरौ । मिथ्या मोह उदै से समझो, इह सदन है मेरी ॥२॥ सदगुरु बचन जोइ घट दीपक मिट अनादि अधेरी। असंख्यात परदेस भ्यान मय, ज्यो जानऊ निज रेरौ।।३॥ नाना विकलप त्यागि पापको प्राप माप महि हेरौ । जो मनराम प्रचेतन परसौं, सहजै होइ निरी । मनराम ५. पद-मो पिय चिदानंद परवीन प्रपूणे ६. चेतन समझि देखि घरमाहि ७. के परमेश्वरी की परचा विधि ५. जयसि आदिनाथ जिनदेव ध्यान गाऊ ३४-३५ १. सम्यक्त्र पणविवि सिरिपास हो
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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