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________________ । ६३१ सं० १६८३ श्रावण अपूर्ण हर्षकीति हिन्दी गुटका-संग्रह ) १०. पंचमगति वैलि ११. पंच सघावा १२. मेषकुमारगीत १३. भक्तामरस्तोत्र १४. पद-अब मोहे कान उपाय १५. पंचपरमेष्टीस्तवन पूनों ४०-४५ हेमराज रूपचंद ४७ ४७-४४ १६. शांतिपाठ संस्कृत १७. स्तवन मांशाधर ५२ कविभानु हिन्दी १८. बारह भावना १६. पंचमंगल रूपचंद २२. २३. " " दरिगह सुनि सुनि जियरा रे तू त्रिभुवन का राउरे । तू तजि परंपरवारे घेतसि सहज सुभाव रे ॥ चेतसि सहज सुभाव रे जियरा परस्यौं मिलि क्या राच रहे। पप्पा पर जाण्या पर अप्पाणा चउगइ दुख्य प्रगाह सहे। प्रवसो गुण कीजै कर्म हं छोज सुगाहु न एक उपाव रे । दसण गाण घरगमय रे जिउ तू त्रिभूवन का राउरे ॥१॥ करमनि वसि पडिया रे प्रणया मूढ़ विभाव रे । मिथ्या मद नडिया रे मोहा मोहि अगाइ रे ।। मोहा मोह प्रणाहरे जिय रे मिथ्यामद नित मांचि रहा । पड़ पडिहार खडग मदिरावत ज्ञानावरणी आदि कह्या ।। हडि चित्त कुलाल भडयारीण प्रष्टाउदोने चताई रे । रे जीवड़े करमनि वसि पड़िया प्रगमा मूढ़ विभाव रे ॥२॥
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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