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________________ ६५६ ] १. षटऋतुवर्णब बारह मासा [ गुटका संमह... जनराज अपूर्ण २४-४३ २. कविस संग्रह . :: १३-६ भिन्न कवियों के नायक नायिका संबन्धी कवित्त हैं। ३. उपदेश पश्चीसी x: : - हिन्दी - - • भपूर्ण १२-६३ ४. कवित्त सुखलाल ५४८६. गुटका सं० १०६ । पत्र सं० २.४ । श्रा० ६४६ इञ्च । भाषा- संस्कृत । पूर्ण । जीर्ण।। विशेष-उमास्वामि त तत्वार्थमन्त्र है। . . . . . . ५५८७. गुटका सं० १६७ ! पत्र सं० २०-६४ । प्रा० ६४५ इञ्च | भाषा-हिन्दी 1 ले० काल सं. १७४८ . शाख सुदा १४ | मपूर्ण । दशा-सामान्य। . . . . . . . . . . . . १. कृष्णरुक्मणिबेलि हिन्दी गद्य दीका सहित .. पृथ्वीराज २०-५४ . लेखन काल सं० १७४८ वैशाख सुदी १४ १ २० काल म० १६३७ । अपूर्ण। अन्तिम पाठ रमतां जगष्टीवरती रसमो. रस मिथ्यावचन तामा ५ सरसनि रुकमिणी तरिण सहरि कहि या मुपैतियज़ काहे ॥१०॥ टीका-रहसि एकान्तई रूकमणी साथइ श्रीष्कृरणजो तइ रमता क्रीडाता जे. रस ते दृष्टि दीवा सरीस कह्यौ । पर ते वचन माहीं फूडउ नेमतं मानस साध मानिज्यौ । रुक्मणी सरस्वतीनी सहचरी | सरस्वती तिणइ गुप्तबात कही मुझनई प्रापण जागी ॥ जाणी सर्ववात कही तेहना मुख थक्री सुरणी तिमही ज कहीं ॥ १० ॥ रूप लक्षण गुण तरणास मोरिण जहिवा समरपीक कुरण ।" जाणिया जिका सातिसामैं जंपिया गोविंद राणि तरणां गुण ॥ ११ ॥ टोका--कामरिण नउ रूप लक्षण मुण काहवा भणि समर्थ कुण समर्थ तर छर अपितु को नहि परमह। । माहरि मतिइ अनुसार जिसा ज्याण्या तिस्या ग्रन्थ माहि या कह्या तिण कारण हू ताहरउ बालक छू मा परि कृपा करिज्यो ।।११।। असु शिव नयन रसं शशि वस्थर विजयदसाम रवि रिष बरणोत । . . किसन रुकमणी वेलि कल्पतरु कीधी कमव.ज कल्याण उत ।।.१२॥ . . टीका--प्रचल पर्वत सत्त्व रजु तम गुण ३ प्रग ६ शशिचन्द्रमा १ संवत् १६३७ घर प्रबल गुण रवि ससि संधि तात वीयउ जस ।। करि श्री भरतार श्रवणे दिन रात कंठ करि श्रीफल भगति अपार विषद श्री लक्ष्मी नउं भत्तरि रुकमणी कृष्णनउ श्री रुकमणी जस करी भावना कीधी ए बेलौ अहो भगतो श्रबणे सांभलिउ रात दिन गलइ करउ श्री लक्ष्मी रूप फल पामइ ।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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