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________________ गुटका-संग्रह ] [६५७ वैद वीज जल वयण सुकवि जउ मंडीस धर । पत्र दहा गुण पहपवास भोगी लिखमी बर।। पसरी दीप प्रदीप अधिक गहरी या डवर | मनसुजेणंति अंब फल पामिद अंबर॥ विसतार कोध शुचि जुगी विमल घरगी किसन कहणहार धन । अमृत बेलि पीथल प्रतइ रोपी कलियारा तनुज ॥ ३१३ ।। अर्थ-मूल वेद पाठ तीको बीज कल पाणी तिको कविमाग तिये वयणे करि जमादीस हद पणिइ ।। में दहा ते पत्र दूहा गुग्य ते फूल सुगन्ध वास भोगी भमर श्रीकृष्णाजी वैलिई मांकहइ करो विस्तरी जगत्र नइ विष दीप प्रदीप । प दीवा थी मधिक अत्यन्त विस्तरी जिके मन सुधी एह नउ को जाणइ तोको इसा फल पामइ | अंबर कहिता स्वर्ग नां सुख पामे । विस्तार करी जगत्र नइ विषइ विमल कहीता निर्मल श्रीकिसनजी बलि मा धरणी नइ कहरम हार धन्य तिको पिण अमृत रूपणो बेलि पृथ्वी नइ लिखह अविचल पृथ्वी नई कविराज श्री कल्याण तम बेटा पृथ्वीराजइ कहा। इति पृथ्वीराज कृत कृषण रुकमणी बेलि संपूर्ण | मुणि जम विमल वाचरणार्थ । संवत् १७४८ वर्ष बैशाख मासे कीष्म पक्ष तिथि १४ भ्रगुवासरे लिखतं उणियरा नग्ग्रे ॥ श्री ॥ रस्तु ।। इति मंगलं ।। २. कोकमंजरी x ___ हिन्दी XX ३. बिरहमंजरी नंददास ४. नावनी हेमराज ४६ पथ हैं ६१-६७ ५. नेमिराजमति बारहमासा ६७ ६. पृच्छावलि ६६-६७ ७. नाटक समयसार बनारसीदास ५४८८. गुटका सं० १०७ क । पत्र सं० २३५ । प्रा० ५४४ इश्छ । विषय-पूजा एवं स्तोत्र । १. देवपूजाष्टक संस्कृत २. सरस्वती स्तुति शानभूषण ३. श्रुताष्टक ४. गुरुस्तवन शांतिदास ५, गुर्वाष्टक मादिराज १ - ८
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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