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[ गुटका-संग्रह
वह अंग विसइ जण कुरह विसए चपाउरि पयउ पुगाइ विसए । मट्टइ शामिणी उणावंतु, सिरिम पियलंकिउ रिउ कमन्तु । सुप अट्ठ तासु प्ररि जरिणय तासु, रोहिणी कम्णाणं फामपासु । कत्तिय प्रवाहव सोपवास, गयपुर वहि जिण बसु पुज्जवास । जिरगु अंचिवि मुणि वंदिवि असेस, सिरि वासुपुज्ज पयलविसेस ! मह मझिरिस सणाहो रिणवह देइ गोहिणी जासण्या अंकलइ । प्रबलोइवि सुत्र जुम्मरण समेय, परिरणयण चिंत यमणि अमेय ।
णियमति मंतु गिहिवि अभेउ, रिणय बुद्धि पियारिवि गिहियसेउ । धत्ता ---
सा पुरवज बहिरि कि परिउ साहि. रिवद्ध मंच चउ पासहि ।
करणयमयसु वंचिय रयण करंचिय, मडिय मंभव पासहि ॥ १ ॥ मन्तिम भाग
निसुगर जिरणवरिण सावरण वियस घणं करनस्तु प्रावमानु । यग्घा घायलो जह सरपुणत्यि, मय साबही जीवही सहणसत्थि । अणु हबइ सुहामुह एक्कुजीउ, तरण भिषा लेइ मरणाउ भीउ । मंसार सहुकमखु पूरकर समुद्दु, अंगुजि घाउ विलु कुमुदु । प्रासबइ कम्मु जो एहि विच, तहो विलयं संवरु होर कच्च। समं भाथि सहियइ कम्मुनाउ, परिमिउ लोहु जीविउ सपाउ । दुमहु जिरण धम्मु समुत्ति मग्गु, णवि संगहियउ कामे लगउ ।
उ सुरिणत्रि सरिवि जिण सिक्ख दिक्ख, हुउ गणहरु राउ असोउ भिक्ख । संगहिय उपाध्यायउ अममलणारगु, केवलु गउ मोक्खहु सुह विहार । रहि तणउ चरिवि पवण्णसग्गि अन्च, एच्छि दिवि थी लिगु भग्गी । धीयउ विसम्गि संपत्त प्रज्ज, वउपरी दिक्खिय सुवहु सञ्ज । हम को वमोक्खि गयहरिण विकम्म, अणु हहि रिंगरं सर मुत्ति सम्म । च उधरिय लक्खरएसी धरि सुलन्द्रिय परासिरिनाम इन्दी बलच्छि। रोहबउ थिहिउ ताइएउ, रोहिरिण कहविर इय तासु हेउ ।