________________
गुटका संग्रह ]
श्रववि जोगरति करेसर, सो मरनुयरुड महेस । सारउ सुख महियलि भुजेसर, रइ समाण कुल उत्तिरमेस ।।
सोहम्म सग्गी जाएसइ, सहु कीलेसह गिरु सुकुमा लिहि । मखु जिबि जाएसइ सिवपुरि वासु सोबि पावसह । इस जिरति विहार पयोसिज, जहजिरासासरिए गणहरि भासि । जे हरणाहि कामि सउ, तं बुहारण मठु खमंडु पिस्न ।
एहु सत्यु जो लिहा लिहाव, पढेर पढावह कह कहावइ । जो नर नारि एहमणि भावक, पुष्णइ श्रहिउ पुष्ण फलु पावइ । धन्ता-
सिरिसेाह सामिउ, सिवपुरि गामिठ, बड्डमा तस्करु |
जइ मागिल देइ करण करेइ देउ सुबोहि लाहु परमेंसरु ।। २७ ।।
यसरि वड्मारकापुराणे सिंघादिभवभावावण्यणो जिपराइ बिहागफलसंपत्ती || सिरि रसेा विरइए सुभव्वासप्रणिमित्तं पढम परिछेह सम्मतो |
॥ इति जिरणरात्रि विधान कथा समाप्ता ॥
मुभद्र
२. रोहिरिणविधान
प्रारम्भिक भाग
अपभ्रंश
वासवनुमपायहो हरिविसायहो निज्जिय कायहो पलु सिवासहायहो केवलकाय हो रिसहहो पर्खाविवि कपकमल परमेट्टि पंच पर विवि महंत, भवजलहि पोय दिहडिय कवंत । सारभ सारस ससि जो जेम, रिगम्मल वरिषज्ज केएकेम । जहि गोयमए विवि वरस्स, सेणिय रायस्स जसोहरस्स । सिंह रोहिणी न कह कहमि भव्य, जन् सत्तिरिण वारिय पावर । जय जंबूदीव हो भरइ खेत्ति, कुंरु जंगल ए सिवि गए जत्ति । हरिणावरु पुरज पवररिद्ध, जर वसई जित्थु सह सय समिद्ध । तहि वीमसो गयसोउ भूउ, बिज्जु पहरद्द रहियय भू । तां दिरगु कुलपुन्दण मसोड, जमिल गउ प्र पूरि सोउ ।
1 ६२६
२१.२५