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मानुकीति
गुटका-संग्रह ] १३८. भजित जिन सरण तुम्हारो १३६. तेरी मूरति रूप कनी १४०, प्रथिर नरभव जागिरे
रूपचन्द
विजयकीति
१४१. हम है श्रीमहावीर
१४२, भलेभल मासकली मुझ, प्राज १४३. कहां लो दाम तेरी पूज करे १४४. प्राज ऋषभ परि जाये
१४५. प्रात भयो बलि जाऊं
१४६. जागो जग्गोजी जागो
हर्षचन्द
अनन्तकोत्ति
१४७. प्रात समै उठि जिन नाम लीजे १४. ऐसे जिनवर में मेरे मन विमलायो १४६. प्रायो सरण तुम्हारी १५०. सरण तिहारी प्रायो प्रभु मैं १५५. बीस तीर्थकर प्रास संभारो १५२. कहिये दीनदयाल प्रभु तुम
प्रखमराम
विजयकोति
द्यानतराय
१५३, म्हारे प्रकट देव निरचन
बनारसीदास
१५४. हूं सरणगत तोरी रे १५५, प्रभु मेरे देखत प्रानन्द भये
जगतराम १५६. जीवडा तू जागिर्ने प्यारा समकित महल में हरीसिंह
१५७. घोर घटाकरि प्रायोरी जलघर
जयकात्ति
गुणचन्द
१५८. कोन दिवासू प्रायो रे वनचर १५६. सुमति जिनंद गुणमाला १६०. जिन बादल चदि पायो हो जगमें १६१. प्रभु हम चरणन सरन फरी १६२. दिन २ देही होत पुरानी १६३. सुगुरु मेरे बरसत ज्ञान झरी
ऋषभहरी
जनमल
हरखचन्द