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________________ ५८६ ] [ गुटका-संग्रह १६४. क्या सोचत अति भारी रे मन धानतराय १६५, समकित उत्तम भाई जगत में १६६. रे मेरे बटशान धनागम छायो १६७. मानसरोवर सोइ हो भविजन १ १६८. हो परमगुरु बरसत ज्ञानझरो १६६ उ. . . जिन दर्शन को नेम देवसेन १७०. मेरे प्रब गुरु है प्रभु ते असा हर्षकीति १७१. बलिहारी खुदा के वन्दे ।। जानि मोहमद १७२. मैं तो तेरी पाज मझिा जानी भूधरदास १७३. देखोरी आज ने मीसुर मुनि । १७४. कहारी कहूं कछु कहत न पाये धानतराय १७५. रे मन करि सदा संतोष बनारसीदास १७६. मेरी २ करतां जनम गयो रे रूपचन्द १७७ देह बुहानी रे मै जानी विजयकत्ति १७८ साधों लज्यो सुमति अकेली बनारसीदास १७६, तनिक जिया जाग विजयनीति १५०. तन धन जोबन मान जगत में १५१ देख्यो बन में ठाडो वीर भूधरदास बनारसीदास वखंतराम १८२. चेतन नेकु न तोहि संभार १५३, कमि रझोरे अरे १८४. लागि रह्यो जीव परभाव में १०५. हम लामे प्रातमराम सों द्यानतराय १८६. निरन्तर ध्याऊ नेमि जिनंद विजयकोति १८७. कित गयोरे पंथो बोलती भूधरदास बनारसीदास १८८. हम बैठे पानी मौन से १८६. बुविधा कब जैहेगी
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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