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________________ v४ ] । गुटका-संग्रह ११२. सुमरन ही में त्यारे ग्रानतराष हिन्दी ११३. प्रबले जैनधर्म को मरणों द्यानतराय xxx धानत्तराय जगतसग विजयकाति ११४. बैठे बच्चदन्त भूपाल ११५. इह सुंदर मूरत पार्श्व की ११६. उदि संवारै कीजिये दरसरण ११७. कौन कुवारण परी रे मना तेरी ११८. राम भरथ सों कहे मुभाय ११६. कहे भरतजी सुणि हो राम १२०. मूरति कैसे राज १२१.देखो सखि कौन है नेम कुमार १२२. जिनवरजीसू प्रीति करी री। १२३. भोर ही आये प्रभु दर्शन को १२४. जिनेमुरमेव । करश तुम हो १२५. ज्यौं बने त्यो तारि भोक १२६. हमारी बारिश्री नेमिकुमार १२७. आछे रङ्ग राचे भली भई १२८. एरी बलो प्रभुको दर्श करां १२६. नैना मेरे दर्शन है लुभाय १३०, लागी माझी प्रीति न साझे १३१. हैं तो मेरी सुधि हूं न लई १३२. मानों मैं तो शिव सिधिलाई हरखचन्द गुलामकृष्ण जगतराम 17 xxxx १३३. जानीये तो जानी तेरे मनकी कहानी विजयकीति १३४, नयन लगे मेरे नयन लगे १३५. मुझपे महरि करो महाराज विजयकोति १३६. चेतन चेत निज घट मांहि १३७. पिव बिन पल छिन बरस विहात
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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