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________________ ५६६ ] [ गुटका-संग्रह ३. कर्मविपाक संस्कृत विशेष-ब्रह्मा नारद संवाद में से लिया गया है। तीन प्रध्याय हैं। ४. भादोश्वर पा समवारण हिन्दी १६६७ कार्तिक सुदी १२-१४ प्रादीश्वर की समोश रग-ग्रादिभाग गुर मनपति मन ध्याऊं, चित घरन सरन ल्याउ । मति मांगि लैज प्रैसी, मुनि मानि लैहि जैसी ॥१॥ मादीश्वर गुण गाऊं, वरु साथ सगु (र) पाउं । चारित्र जिनेस लोया, भरप को राजु सीमा ॥२॥ तजि राज होइ भिखारी, जिन मौन बरत धारी। सब पापनी कमाई, भई उदय अंतराई ।।३।। सुनि भीख काज जावइ, नहिं भानु हाथ प्रावइ । सेइ कन्या लरूपा, कोई रतन अति अनूषा ।।४।। अन्तिमभाम शिष सहम गुन गाव है, कल बोधि बीज पाबइ। पर जोदिइ मुख भासइ, प्रभु चरन सरन राख ७१।। दोहरा समासरण जिनरायी की, गावहि जे नरनारि । मनयंछित फल भोगबई, तिरि पहुचहि भवपार |७२।। सोलसह समधि वरष, कातिक सुदी बलिराज 1 सालकोट सुमधानवर, जय सिंध जिनराज ॥७३॥ इति श्री प्रादीश्वरजी का समोसरण समाप्त । ५. द्वितीय समासरा ब्रह्मगुलाल पादिभाम प्रथम मुमिरि जिनराम अनंत, सुख निधान मंगल सिव संत जिनवाणी सुमिरत सनु बढे, ज्यौ गुनठांन छिनक छिनु चढं ॥१॥ गुरूपद सेवह ब्रह्म गुलाल, देवसान गुर मंगल माल । इमाहि मार बरन्यो सुखसार, समवसरन जैसे बिसतार ।।२।। बोल बुधि मन भायो कर, मूरिख पद प्रान पायो डर । सनह भव्य मेरे परवान, समोसरन को करौं बखान ||३||
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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