________________
५६४ ]
[ गुटका-संग्रह अन्तिमपाठ
वंस विद्याधरे उपनि मात, नामे नयनिधि पावती । भाव करंता ही भव दुख जायता, साती न सरोमरिण यंदीये ।। ५८ ॥ इम गावै धर्मभूपण रास, रत्नमाल गुथो रचि रास । सर्व पंचमिलि मंगल थयो, कहै तारास ऊपजे रस विलास ।। ढाल भवन केरी इम भणे, कंठ विना राग किम होई। बुधि बिना ज्ञान नदिसोई, गुरु बिना मारग कोम पानी सौ । दीपक बिना मंदर अधकार, देवभक्ति भाव बिना सब द्वार तो ॥५६॥ रस बिना स्वाद न ऊपजे, तिम तिम मति व देव गुरु पसाव । खिमा विन सील कर कुल हारिण, निर्मल भाव राखो सदा । केतन कलक भानि कुल जाय, कुमति विनास निर्मल भावसू । ते समझो सबही नरनारि, महंत बिना दुर्लभ सरावक अवतार । जुहि समता भावसू स्मोपुरवास, एह की सब मंगल करी।।
इति श्री अंजमारास सती सुदरी हनुमंत प्रसादात् संपूरन । स्वस्ति श्री मूलसंधे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुंदकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्रीजगत्कीति सत्र भ० श्रीदेवेन्द्रका ति तत्प? भ० श्रीमहेन्द्रकोति तस्य भ. श्रीक्षेमेन्द्रकीति तस्योपदेश गुणकोतिना इत्यादि तन्मध्ये पंडित कुस्यालि लिखामि बोरान नगरे सुधाने श्रीमहावीरचैत्यालये अमुक श्रावके सर्व वघेरवाल ज्ञात बुधिति समपात रहा श्रीवृषभनाथ यात्रा निमित्त गवन उपदेश मासोत्तममासे शुभे शुक्लपक्षे आसोज बदी ३ दोतबार संवत १५२० मालिवाहने १६७६ शुभमस्तु । ६. न्हवविधि
संस्कृत ले. काल १८२. नासोज दी ३ ७. छियालीसगुण
हिन्दी
, पृष्ठ ३६वे पर चौबीसवें तीर्थङ्करोंके चित्र है. चौबीस तीर्थर परिचय
हिन्दी विशेष—पत्र ४०वें पर भी एक चित्र है सं १८२० में पं० खुशालचन्द ने बैराठ में प्रतिलिपि की थी। १०. भविष्यदत्तपञ्चमीकथा प्र रायमल्ल
हिन्दी रपनाकाल सं० १६३३ पृष्ठ ५० पर रेखाचित्र ले. काल सं० १८२१ बोराव ( बोराज ) में खुशालचन्द ने प्रतिलिपि को यो। पत्र ६२ पर तीर्थरों के ३ चित्र हैं।