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________________ गुटक सग्रह ] दोहा - एक कर्म को नरनारी करि उधर, चरण प्रणसंस्थान संजोई॥१॥ पनि पाउ- कवित्त-- सकलकीति मुनि पाप सुनत मि, संताप चौरासी मरि जाई फिर अजर अमर पद पाइये ।। जूनी पोथी भई अक्षर दीसे नहीं फेरु उतारी बंध ईद कवित्त बेली बनाई क गाईये ।। चंप नेरी चाटसू केते भट्टारफ भये साया पार अड़सठ जेहि कर्मचूर बरत कही है वणाई ध्याइये ।। संवत् १७४६ सोमबार ७ करकोव कर्मचूर ब्रत बैठगी अमर पद चूरी सोर सीधाम जाइये ।। ट-पाठ एक दम मशुद्ध है । लीपि भी विकृत है। २. ऋषिमण्डलमन्त्र संस्कृत ले. काल १७३६ प्रपूर्ण २० ४. चिंतामणि पार्श्वनाथस्तोत्र ५. अंजना को रास धर्मभूषण हिन्दी प्रारम्भ पहेली रे प्रहंत पाय नमैं । हर भव दुख भंजन त्वं भगवंत कर्म कायातना का पसौ । पापना प्रभव प्रसि सौ मंत तो रास भरय इति अंजना तै तौ संगम साधि न गई स्वर लोक सौ सती न सरोमरिण वंदीये ॥१॥ वसं विधाधर उपनी माय, नामै तीन वनंधि संपजे । भाव करता हौ भवदुल जाय, सतो न सरोमणि वंदये ।।२।। ब्राह्मी नै सुदरी बंदये, राजा ही रसभ तणे भर देय । बाल परी तप बन गई काम ना भौगन बंधीय जे हतौ ।। सती म....."३ ॥ मेघ सेनापति ने घरनारि अंजना सो मदालसा । स्मारे न कौन सीयाल लगार तो"॥ सती न ".."४ ॥ पंचस किसन कुमारिका, ईनि वाल कुवारी लागो रे पावे | जादव जम ज्ञानी कार, द्वारिका दहन सुनि तप जाय । हरी तनी प्रजना बंदीय जिने राग सोढी मन मैं घरचा वैराग तो॥ सती न."
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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