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-४५-- त्रिभुवनपतिभव्वरतीर्थनाथादिमुख्यान ।
जगति सकलकीर्त्या संस्तुवे तद् गुणाप्त्य ॥ प्रति में ३ पत्र ( १४३ से १४५ ) बाद में लिखे गये है। प्रति प्राचीन तथा संभवतः १७ वीं शताब्दी की लिखी हुई है । कथा कोश में कुल कथाओं की संख्या ५० है। ४० समोसरण
१७ धीं शताब्दी में ब्रा गुलाल हिन्दी के एक प्रसिद्ध कवि हो गये है। इनके जीवन पर कवि छत्रपति ने एक सुन्दर काव्य लिखा है । इनके पिता का नाम हल्ल था जो चन्दवार के राजा कीर्ति के
आश्रित थे | ब्रह्म गुलाल स्वांग भरना जानते थे और इस कला में पूर्ण प्रवीण थे। एक बार इन्होंने भुनि का स्वांग भरा और ये मुनि भी बन गये | इनके द्वारा विरचित अब तक = रचनाएं उपलब्ध हो चुकी है। जिसमें त्रेपन क्रिया ( संवत् १६६५ ) गुलाल पच्चीसी, जलगालन क्रिया, विवेक चौपई, कुपण जगावन चरित्र ( १६७१ ), रसविधान चौपई एवं धर्मस्वरूप के नाम उल्लेखनीय हैं। - 'समोसरण' एक स्तोत्र के रूप में रचना है जिसे इन्होंने संवत् १६६८ में समाप्त किया था। इसमें भगवान महावीर के समवसरण का वर्णन किया गया है जो ६७ पद्यों में पूर्ण होता है । इन्होंने इसमें अपना परिचय देते हुये लिखा है कि वे जयनन्दि के शिष्य थे।
स रहसै अढसठिसमै, माघ दसै सित पक्ष ।
गुलाल ब्रह्मा भनि गीत गति, जयोनन्दि पद सित ॥६६॥ ४१ सोनागिर पच्चीसी
यह एक ऐतिहासिक रचना है जिसमें सोनागिर सिद्ध क्षेत्र का संक्षिप्त वर्णन दिया हुआ है। दिगम्बर विद्वानों ने इस तरह के क्षेत्रों के वर्णन बहुत कम लिखे हैं इसलिये भी इस रचना का पर्याप्त महत्व है । सोनागिर पहिले दतिया स्टेट में था अब वह मध्यप्रदेश में है 1 कवि भागीरथ ने इसे संवन् १८६१ ज्येष्ठ सुदी १४ को पूर्ण किया था । रचना में क्षेत्र के मुख्य मन्दिर, परिक्रमा एवं अन्य मन्दिरों का भी संक्षिप्त वर्णन दिया हुआ है। रचना का अन्तिम पाठ निन्न प्रकार है....., मेला है जहा को कातिक सुद पतौ को,
हाट हू बजार नाना भांति जुरि आए हैं। भावधर चंदन को पूजत जिनेंद्र काज,
___ पाप मूल निकंदन को दूर हू सै धाए है। गोठ जैउ नारे पुनि दान देह नाना विधि,
सुर्ग पंथ जाइवे को पूरन पद पाए है।