SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -१६ कीजिये सहाइ पाइ आए हैं भागीरथ, गुरु के प्रताप सौन गिरी के गुण गाए हैं । दोहा जेठ सुदी चौदस भली, जा दिन रची बनाइ । संवत् अाद सिठ, संवत् लेड गिनाई ॥ सुनै जो भाव घर, भरे देइ सुनाइ । मनछित फल को लिये, सो पूरन पद की पाई ॥ ४२ हम्मीर रासो etail एक ऐतिहासिक काव्य है जिसमें महेश कवि ने महिमासाह का बादशाह अलाउनके साथ गड़ा, महिमासाह का भागकर रणथम्भौर के महाराजा हम्मीर की शरण में आना, बादशाह अलाउद्दीन का हम्मीर को महिमासाद को छोड़ने के लिये बार २ समझाना एवं अन्त में अलाउद्दीन एवं हम्मीर का भयंकर युद्ध का वर्णन किया गया है। कवि की वर्णन शैली सुन्दर एवं सरल है । रामो का और कहां लिखा गया था इसका कवि ने कोई परिचय नहीं दिया है। उसने केवल अपना नामोल्लेख किया है वह निम्न प्रकार है । मिले राषपति साही धीर ज्यौ नीर समाही । ज्यों पारिस कौ परसि वजर कंचन होय जाई ॥ अलादीन हमीर से हुआ न होम्यो होयसे । ऋषि महेस यम उचरं वं सभसदे तसु पुरवसे ॥
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy