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दोहरा-श्री गनेस सरस्वती, सुमरि गुर चरननु चितलाय । षेत्रपाल दुखहरन को, सुमति सुवुधि बताय॥
___ चौपई श्री जिनचंद सुवाच वरखांनि, रच्यो सोभाग्य ते यह हरष मुनिजान 1
इन सीख दीनी जीव दया आनि, संतोष बैद्य लइ तिरहमान ।।२।। ३८ प्रतकथाकोश
इसमें ब्रत कथाओं का संग्रह है जिनकी संख्या ३७ से भी अधिक है। कथाकार पं० दामोदर एवं देवेन्द्रकीर्ति हैं। दोनों ही धर्म चन्द्र सूरि के शिष्य थे । ऐसा मालूम पड़ता है कि देवेन्द्रकीर्ति का पूर्व नाम दामोदर था इसलिये जो कथायें उन्होंने अपनी गृहस्थावस्था में लिखी थी उनमें दामोदर कृत लिख दिया है तथा साधु बनने के पश्चात जो कथायें लिम्बी उनमें देवेन्द्रकीर्ति लिख दिया गया । दामोदर का उल्लेख प्रथम, घष्ठ, एकादश, द्वादश, चतुर्दश, एवं एकविंशति कथाओं की समाप्ति पर आया है।
कथा कोश संस्कृत गद्य में है तथा भाषा, भाव एवं शैली की दृष्टि से सभी कथायें उच्चस्तर की हैं। इसकी एक अपूर्ण प्रति अ भंडार में सुरक्षित है । इसकी दूसरी अपूर्ण प्रति ग्रंथ संख्या २५४३ पर देखें । इसमें ४४ कथाओं तक पाठ हैं। ३६ व्रतकथाकोश
भट्टारक सकलकीर्ति १५ वीं शताब्दी के प्रकांड विद्वान थे। इन्होंने संस्कृत भाषा में बहुत ग्रंथ लिखे हैं जिनमें आदिपुराण, धन्यकुमार चरित्र, पुराणसार संग्रह, यशोधर चरित्र, बद्ध मान पुराण आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । अपने जबरदस्त प्रभाव के कारण उन्होंने एक नई भट्टारक परम्परा को । जन्म दिया जिसमें ब० जिनदास, भुवनकीर्ति, ज्ञानभूषण, शुभचन्द जैसे उच्चकोटि के विद्वान हुये।
प्रतकथा कोश अभी उनकी रचनाओं में से एक रचना है । इसमें अधिकांश कथायें उन्हीं के | द्वारा विरचित हैं। कुछ कथायें अभ्र पंष्टित तथा रत्लकीर्ति श्रादि विद्वानों की भी हैं । कथायें संस्कृत पद्य । में हैं । भ० सकलकीर्ति ने सुगन्धदशमी कथा के अन्त में अपना नामोल्लेख निम्न प्रकार किया है:
असमगुण समुद्रान, स्वर्ग मोक्षाय हेतून | प्रकटित शिवमार्गान्, सद्गुरुन् पंचपूज्यान् ।।
विस्तृत परिचय देखिये डा. कासलीवाल द्वारा लिखित बुचराज एवं उनका साहित्य-जैन सन्देश शोधांक
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