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________________ -४४ सदलबल के साथ भीमनगरी की ओर प्रस्थान, पूजा के बहाने रुक्मिणी का मन्दिर की ओर जाना, रुक्मिणी का सौन्दर्य वर्णन, श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी को रथ में बैठाना, कृष्ण शिशुपाल युद्ध वर्णन, रूक्मिणी द्वारा कृष्ण की पूजा एवं उनका द्वारिका नगरी को प्रस्थान आदि का वर्णन किया गया है । रासो में दूहा, कलश, त्रोटक, नाराच जाति छंद आदि का प्रयोग किया गया है। रासो की भाषा राजस्थानी है । नाराच जातिछंद मोहती । घुघरी ॥ सोमती । आणंद भरीए सोहती, त्रिभवणरूप रुणं भरणंत नेवरी, सुचल चरण a man झाल, श्रवण हंस रतन हीर जडत जाम, खीर की अनोपंती ॥ मलमले ज चंद सूर, सीस फूल सोहए। या सिग बेणिरुले जेम, सिरह मणिज मोहए ॥ सोवन में रलदार, जडित कंठ मैं रुले । असंध जति जति सो नाकिउ जलाडुले ॥ ३४ लग्नचन्द्रिका यह ज्योतिष का मंथ है जिसकी भाषा स्योजीराम सौगाणी ने की थी । कवि श्रमेर के निवासी थे। इनके पिता का नाम कंवरपाल तथा गुरु का नाम पं० जैचन्दजी था। अपने गुरु एवं उनके शिष्यों के आग्रह से ही कवि ने इसकी भाषा संवत् १८७४ में समाप्त की थी। लग्नचन्द्रिका ज्योतिष का संस्कृत में अच्छा ग्रंथ है। भाषा टीका में ५२३ पद्म हैं। इसकी एक प्रति झ भंडार में सुरक्षित है । इनके लिखे हुये हिन्दी पद एवं कवित्त भी मिलते हैं: ३५ लब्धि विधान चौपई for विधान चौपई एक कथात्मक कृति है इसमें लब्धिविधान व्रत से सम्बन्धित कथा दी हुई है । यह व्रत चैत्र एवं भादव मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, द्वितीय एवं तृतीया के दिन किया जाता है । इस व्रत के करने से पापों की शान्ति होती है । चौपई के रचयिता हैं कवि भीषम जिनका नाम प्रथमबार सुना जा रहा है। कवि सांगानेर ( जयपुर ) के रहने वाले थे। ये खरडेलवाल जैन थे तथा गोधा इनका गोत्र था । सांगानेर में उस समय स्वाध्याय एवं पूजा का खूब प्रचार था। इन्होंने इसे संवत् १६९७ ( सन् १५६० ) में समाप्त किया था ।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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