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-४३-- कासम रसिक विलास भी है । श्याममिश्र आगरे के रहने वाले थे लेकिन उन्होंने कासिमखां के संरक्षएता में जाकर लाहौर में इसकी रचना की थी । कासिमखां उस समय यहां का उदार एवं रसिक शासक या | कवि ने निम्न शब्दों में उसकी प्रशंसा की है।
कासमखान सुजान कृपा कधि पर करी । रागनि की माला करिवे को चित धरी ।
दोहा सेख खान के घंश में उपज्यौ कासमखांन । निस दीपग ज्यौं चन्द्रमा, दिन दीपक ज्यो मान !| कवि बरन छवि स्वान की, सौ वरनी नहीं जाय ।
कासमखांन सुजान की अंग रही छवि छाय ॥ रागमाला में भैरोंराग, मालकोशराग, हिंडोलनाराग, दीपकराग, गुणकरीराग, रामकली, ललितरागिनी. विलावलरागिनी, कामोद, नट, केदारो, पासायरी, मल्हार आदि रागरागनियों का वर्णन किया गया है।
श्याममिश्र के पिता का नाम चतुर्मुज मिश्र था । कवि ने रचना के अन्त में निम्न प्रकार वर्णन किया है
संवत् सौरहसे वरष, उपर बीते दोइ । फागुन बुदी सनोदसी, सुनौ गुनी जन कोइ ।।
सोरठा पोथी रची लाहौर, स्याम श्रागरे नगर के ।
राजघाट है ठौर, पुत्र चतुरभुज मिश्र के I इति रागमाला ग्रंथ स्याममिश्र कृत संपूरण । ३३ रुक्मणिकृष्णजी को रासो
___ यह तिपरदास की रचना है । रासो के प्रारम्भ में महाराजा भीमक की पुत्री रुक्मिणी के सौन्दय का वर्णन है । इसके पश्चात् रुक्मिणि के विवाह का प्रस्ताव, भीमक के पुत्र रुक्मि द्वारा शिशु. पाल के साथ विवाह करने का प्रस्ताव, शिशुपाल को निमंत्रण तथा उनके सदलबल विवाह के लिये प्रस्ताव, रुक्मिणी का कृष्ण को पत्र लिख सन्देश भिजवाना, कृष्णाजी द्वारा प्रस्ताव स्वीकृत करना तथा