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-१२साधारन रीति नहीं स्वारथ की प्रीति जाके । जब तव वचन प्रकासत पार के ॥ दिल को उदार निरवाहे जो पै दे करार । मति को सुठार गुनवीसरे न यार के ।।२१।। अंतरंग वाहिज मधुर जैसी किसमिस । धनखरचन को कुबेरांनि घर है। गुन के बधाय कू जैसे चन्द सायर कू । दुख तम चूरिवे कूदिन दुपहर है ॥ कान के सारिने बाद विभन्न है : मंत्र के सिखायचे • मानों सुरगुर है ॥ ऐसे सार मित्र सौ न कीजिये जुदाई कमी | धन मन तन सब वारि देना वर है ॥२१४।।
इस तरह मनमोदन पंचशती हिन्दी की बहुत ही सुन्दर रचना है जो शीघ्र ही प्रकाशन योग्य है। ३१ मित्रविलास
मित्रविलास एक संग्रह मंथ है जिसमें कवि घासी द्वारा विरचित विभिन्न रचनाओं का संकलन है । घासी के पिता का नाम बहालसिंह था । कवि ने अपने पिता एवं अपने मित्र भारामल के आग्रह से मित्र विलास की रचना की थी । ये भारामल संभवतः वे ही विद्वान हैं जिन्होने दर्शनकथा, शीलकथा, दानकथा प्रादि कथायें लिस्दी है । कवि ने इसे संवत् १७८९ में समाप्त किया था जिसका उल्लेख ग्रंथ के | अन्त में निम्न प्रकार हुआ है:
कर्म रिपु सो तो चारों गति मैं घसीट फिरयो, ताही के प्रसाद सेती घासी नाम पायौ है। भागमल मित्र वो घहालसिंह पिता मेरो, तिनकीसहाय सेती ग्रंथ ये बनायौ है ।। या मैं भूल चूक जो हो सुधि सो सुधार लीजो, मोपै कृपा रष्ठि कीज्यो भाव ये जनायौ है । दिगनिध सतजान हरि को चतुर्थ ठान, 'फागुण सुदि चौथ मान निजगुण गायौं है ।। कवि ने मथ के प्रारम्भ में वर्णनीय विषय का निम्न प्रकार उल्लेख किया है:--
मित्र विलास महासुखदैन, चरनु बस्तु स्वाभाविक ऐन ।
प्रगट देखिये लोक मंझार, संग प्रसाद अनेक प्रकार ॥ शुभ अशुभ.मन की प्राप्ति होय, संग कुसंग तणो कल सोय ।
पुद्गल वस्तु की निरण्य ठीक, हम कू करनी है तहकीक ।। मित्र विलास की भाषा एवं शैली,दोनों ही सुन्दर है तथा पाठकों के मन को लुभावने वाली है । ग्रंथ प्रकाशन योग्य है।
घासी कवि के पद भी मिलते हैं। ३२ रागमाला---श्याममिश्र
राग रागनियों पर निबद्ध सगमाला श्याम मिश्र की एक सुन्दर कृति है। इसका दूसरा नाम |