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-३१साहिपुरा सुभथान में, भलो सहारो पाप। धर्म लियो जिन देव को, नरभव सफल कराय।। नृप उमेद ता पुर विष, करें राज बलवान | तिन अपने भुजबलयकी, अरि शिर कीहनी श्रानि ।। ताके राज सुराज मैं ईनिमोति नहीं डा। अवलूपुर में सुस्वथकी तिष्ठे हरए जु आनि ।। करी कथा इस ग्रंथ की, छेद बंध पुर माहि । मंथ करन कळू बीचि में, श्राकुल उपजी नांहि ॥ ५३॥ साहि नगर साय भयो, पायो सुभ अवकास ।
पूरण ग्रंथ सुख त कीयौ, पुण्याश्रव पुण्यवास ।। ५४ ।। चौपई एवं दोहा छन्दों में लिखा हुआ एक सुन्दर ग्रंथ है । इसमें से कथानों का संग्रह है। कवि ने इसे संवत् १८२२ में समाप्त किया था जिसका रचना के अन्त में निम्न प्रकार उल्लेख है:
संवत् अष्टादश सत जानि, उपरि बीस दोय फिरि नि ।
फागुण सुदि ग्यारसि निसमाहि, कियो समापत उर हुल साहि ।। ५५ ।। प्रारम्भ में कवि ने लिखा है कि पुण्यात्रब कथा कोश पहिन्ने प्राकृत भाषा में निबद्ध था लेकिन जब उसे जन साधारण नहीं समझने लगा तो सकल कीति आदि विद्वानों ने संस्कृत में उसकी रचना की | जब संस्कृत समझना भी प्रत्येक के लिए क्लिष्ट होगया तो फिर आगरे में धनराम ने उसकी बनिका की । टेकचंद ने संभवतः इसी व वनिका के आधार पर इसकी छन्दोबद्ध रचना की होगी। कविने इसका निम्न प्रकार उल्लेख किया है:
साधर्मी धनराम जु भए, संसकृत परवीन जु थए । तो यह ग्रंथ आगर थान, कीयो वचनिका सरल बग्बान ।।। जिन धुनि तो विन अक्षर होय, गणधर सममै और न कोय । तो प्राकृत मैं कर बस्त्रांन, तब सब ही सुनि है गुणखानि ॥३॥ तम फिरि बुधि हीनता लई, संस्कृत वानी श्रुति ठई । फेरि अलप बुध ज्ञान की होय, सकल कीर्ति आदिक जोय ॥ तिन यह महा सुगम करि लीए, संस्कृत अति सरल जु कीए ।
२७ बारहभावना
पं० रश्धू अपभ्रंश भाषा के प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं । इनको प्रायः सभी रचनायें अपभ्रंश