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________________ 1381 उनकी पांचवी कृति है जिसमें दोडारायसिंह के प्रसिद्ध नेमिनाथ मन्दिर की मूलनायक प्रतिमा नेमिनाथ का न किया गया है। ये १७ वीं शताब्दी के विद्वान् थे । रचना में ४१ छन्द हैं तथा अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है: श्रीमन्नेमि नरेन्द्रकी तिरतुलं चित्तोत्सवं च कृतात् । पूर्षानेकमवार्जितं चकलुपं भक्तस्य वै जर्हतान् ॥ उद्ध. त्या पद एवं शर्मदपदे, स्तोतृनहो" '' शाश्वत् छी जगदीश निर्मलहृदि प्रायः सदा वर्ततात् ॥४१॥ उस्तोत्र की एक प्रति ञ भण्डार में संग्रहीत है जो संवत् १७०४ की लिखी हुई है। २२ परमात्मराज स्तोत्र भट्टारक सकलकीसि द्वारा विरचित यह दूसरी रचना है जो जयपुर के शास्त्र भंडारों में उपसब्ध हुई है | यह सुन्दर एवं भावपूर्ण स्तोत्र है । कवि में इसे महारुन शिखा है। शोध की मात्रा ल एवं सुन्दर है । इसकी एक प्रति जयपुर के के भंडार में संग्रहीत है। इसमें १६ पद्य हैं । स्तोत्र की पूरी प्रतिमंथसूची के पृष्ठ ४०३ पर दे दी गयी है । २३ पासचरिए पासचरिए अपभ्रंश भाषा की रचना है जिसे कवि तेजपाल ने सिवदास पुत्र धूलि के लिये fres की थी। इसकी एक अपूर्ण प्रति भण्डार में संग्रहीत है। इस प्रति में ५ से ७७ तक पत्र हैं जिन में आठ संधियों का विवरण है। आठवीं संधि की अन्तिम पुष्पिका निम्न प्रकार है इयसिरि पास चरित' इयं कइ तेजपाल सायं अणुसंणियसुहद्द घूघति सिवदास पुत्तरेण सग्गग्गवाल छीजा सुपसाएण लम्भए गुरां अरविंद दिखा श्रमसंधी परिसमत्तो ॥ तेजपाल ने प्र'थ में दुबई, घत्ता एवं कडवक इन तीन छन्दों का उपयोग किया है । पहिले फिर दुबई तथा सबके अन्त में कडबक इस क्रम से इन छन्दों का प्रयोग हुआ है । रचना अभी अप्रकाशित है । तेजपाल १४ वीं शताब्दी के विद्वान थे । इनकी दो रचनाएं संभवनाथ चरित एवं वरांग चरित पहिले प्राप्त हो चुकी हैं । २४ पार्श्वनाथ चौपई पार्श्वनाथ चौपई कवि लाखो की रचना है जिसे उन्होंने संवत् १७३४ में समाप्त किया था ।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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