________________
. इति त्रिविधसैद्धान्तिकचक्रयाचार्यश्रीनेमिचन्द्रस्य प्रियशिष्यब्रमजिनदासविरचितं धर्मपंचविशतिका नाम शास्त्रसमाप्तम् ।। २. निजामणि
यहाँ प्रसिद्ध विद्वान् ब्रह्म जिनदास की कृति है जो जयपुर के 'क' भएडार में उपलब्ध हुई है । रचना छोटी है और उसमें केवल ५४ पद्य है । इसमें चौबीस तीर्थीकरों की स्तुति एवं अन्य शलाका महापुरुषों का नामोल्लेख किया गया है । रचना स्तुति परक होते हुये भी आध्यात्मिक है । रचना का आदि अन्त भाग निम्न प्रकार है:
श्री सकल जिनेश्वर देव, हूं तझ पाय करू सेव ।। हवे निजामणि ऋहु सार, जिम क्षपक तरे संसार ।। १ ।। हो आपक सुणे जिनवाणि, संसार अथिर तू जाणि । इहां रहमा नहिं कोई थीर, हवे मन हद करो निज धीर ॥२॥ ग्या आदिश्वर जगीसार, ते जुगला धर्म निवार । ग्या अजित जिनेश्वर चंग, जिने कियो कर्म नो भंग ।। ३ ।। ग्या संभव भव हर स्वामी, ते जिनवर मुक्ति हि गामी । ग्या अभिनंदन आनंद, जिने मोड्यो भव नो कंद।।४॥ ग्या मुमति सुमति दातार, जिने रण मुमी जित्यो मार। ग्या पद्मप्रभ जगियास, ते मुक्ति तणा निवास ॥५॥ ग्या सुपाश्व जिन जगीसार, जसु पास न रहियो भार। ग्या चंद्रप्रभ जगीचंद्र, जिन त्रिभुवन कियो आनन्द ॥६॥
ए निजामणि कहि सार, ते सयल सुख भंडार । जे क्षपक सुणे ए चंग, ते सौख्य पाये अभंग ।। ५३ ।। श्री सकलकीन्ति गुरु ध्याउ, मुनि भुवनकीति गुणगाउ ।
ब्रझ जिनदास भणेसार, ए निजामणि भवतार |! ५४ ॥ २१ नेमिनरेन्द्र स्तोत्र
यह स्तोत्र पादिराज जगन्नाथ कुत है । ये भट्टारक नरेन्द्रकीति के शिष्य थे तथा टोडारायसिंह | (जयपुर ) के रहने वाले थे। अब तक इनकी श्वेताम्यर पराजय (केबलि मुक्ति निराकरण ), सुख निधान, चतुर्विशति संधान स्वोपन टीका एवं शिव साधन नाम के चार प्रथ उपलब्ध हुये थे। नेमिनरेन्द्र स्तोत्र