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वारहसयाई सत्तसियाई, विस्कमरायहो कालडं । पमारहं पट्ट समुद्धरणु, गरवर देवापालई ।।११।।
दामोदर मुनि सूरसेन के प्रशिष्य एवं महामुनि क्रमलभद्र के शिष्य थे। इन्होंने इस ग्रंथ की पंडित रामचन्द्र के आदेश से रचना की थी । ग्रंथ की भाषा सुन्दर एवं ललित है । इसमें घत्ता, दुबई, वस्तु छंद का प्रयोग किया गया है । कुल पद्यों की संख्या १४५ है । इस काव्य से अपभ्रंश भाषा का शनैः शनैः हिन्दी भाषा में किस प्रकार परिवर्तन हुआ यह जाना जा सकता है ।
इसकी एक प्रति ज भंडार में उपलब्ध हुई है । प्रति अपूर्ण है तथा प्रथम - पत्र नहीं हैं। अति सं० १५८२ की लिखी हुई है। १४ तच्चवर्णन
यह मुनि शुभचन्द्र की संस्कृत रचना है जिसमें संक्षिप्त रूप से जीवादि द्रव्यों का लक्षण वर्णित है । रचना छोटी है और उसमें फेवल ५१ पद्य हैं । प्रारम्भ में ग्रंथकर्ता ने निम्न प्रकार विषय वर्णन करने का उल्लेख किया है:
तत्त्वातत्वस्वरूपझं सार्च सर्वगुणाकरं । वीरं नत्वा प्रवक्ष्येऽहं जीवद्रव्यादिलक्षणं ॥१॥ जीवाजीवमिदं द्रव्यं युग्ममाहु जिनेश्वरा | जीवद्रव्यं द्विधातत्र शुद्धाशुद्धविकल्पतः ।।२।।
रचना की भाषा सरल है । ग्रंथकार ने रचना के अन्त में अपना नामोल्लेख निम्न प्रकार किया है:श्री कंजकीत्तिसह वैः शुभेदुमुनितेरितै । जिनागमानुसारेण सम्यक्त्यव्यक्ति-हेतवे ॥५०।।
मुनि शुभचन्द्र भट्टारक शुभचन्द्र से भिन्न विद्वान है । ये १७ वीं शताब्दी के विद्वान थे । इनके द्वारा लिखी हुई अभी हिन्दी भाषा की भी रचनायें मिली हैं। यह रचना अ भंडार में संग्रहीत है । यह प्राचार्य नेमिचन्द्र के पठनार्थ लिखी गई थी। १५ तचार्थसत्र भाषा
प्रसिद्ध जैनाचार्य उमास्वामि के तत्वार्थसुत्र का हिन्दी एयमें अनुवाद बहुत कम विद्वानों ने किया है। अभी क भंडार में इस ग्रंथ का हिन्दीपद्यानुवाद मिला है जिसके का है श्री छोटेलाल, जो अलीगढ़ प्रान्त के मेगांव के रहने वाले थे । इनके पिता का नाम मोतीलाल था। ये जैसवाल जैन थे तथा काशी नगर में आकर रहने लगे थे। इन्होंने इस ग्रंथ का पद्यानुवाद संवत् १९३२ में समाप्त किया था।
छोटेलाल हिन्दी के अच्छे विद्वान थे। इनकी अब तक तत्त्वार्थसूत्र भाषा के अतिरिक्त और रचनायें भी उपलब्ध हुई है। ये रचनायें चौवीस तीर्थकर पूजा, पंचपरमेष्टी पूजा एवं नित्यनियमपूजा है। तत्त्वार्थ सूत्र का श्रादि भाग निम्न प्रकार है।