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________________ धर्मादिचंद्राय स्वकर्मानये । हितोतये श्री सुखिने नियुक्तये ।।१।। चन्दनमलयागिरि कथा .. चन्दनमलयागिरि की कथा हिन्दी की प्रेम कथाओं में प्रसिद्ध कथा है। यह रचना मुनि भरसेन की है जिसका वर्णन उन्होंने निम्न प्रकार किया है मम उपकारी समगुरु, गुण अक्षर दातार, बंदे ताके चरण जुग, भद्रसेन मुनि सार ||३|| रचना की भाषा पर राजस्थानी का पूर्ण प्रभाव है । कुछ पद्म पाठकों के अवलोकनार्थ नीचे दिये जा रहे हैं:- . सीतल जल सरवर भरे, कमल मधुप झणकार । पणघट पाणी भरण कौं, बार बहुन पणिहार !! चंदन बिनु मलयागरी, दिन दिन सूरूत जात । ज्यौं पावस जलधार विनु, वनवेली कुर्मिलात ॥ अगानि माझि जरिवी भली, भलौज विष को पान ! शील खंदिवौ नहिं भलौ, काई कहु शील समान ।। न चंदन पावत देखि करि, ऊठि दियो सनमान ! उतरौ आपणौ धाम है, हम तुम होई पिछशन ॥ रचना में कहीं कहीं गाथायें भी उन त की हुई है। पद्य संख्या १८ है। रचनाकाल एवं लेखन काल दोनों ही नहीं दिये हुये हैं लेकिन पति की प्राचीनता की रष्टि से रचना १७वीं शताब्दी की होनी चाहिये । माषा एवं शैली की दृष्टि से रचना सुन्दर है। श्री मोतीलाल' मेनारिया ने इसका रचना काल सं. १६७५ माना है । इसका दूसरा नाम कलिकापंचमी' कथा भी मिलता है। अमीतक भद्रसेन की एक ही रचना उपलब्ध हुई है। इस रचना की एक सचित्र प्रति अभी हाल में ही हमे भट्टारकीय शास्त्र मंधार डूंगरपुर में प्राप्त हुई है। * बारूदत्त चरित्र यह कल्याएकीर्ति की रचना है । ये भट्टारक सकलकीर्ति की परम्परा में होने वाले मुनि देव. कीर्ति के शिष्य थे। कल्याणकीति ने चारुवस चरित्र को संवत् १६९२ में समाप्त किया था । रचना में १. राजस्थानी भाषा मौर साहित्य पृष्ठ सं० १६१ २. राजस्थान के जैन शास्त्र महारों की अथ सूची भाग २ पू० सं० २३६
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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