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-२४-- प्राचीन एवं अज्ञात रचनाओं का परिचय १ अमृतधर्मरस काय
- अविक धर्म पर यह एक सुन्दर एवं सरस संस्कृत काव्य है। काव्य में २४ प्रकरण में भट्टारक गुणचन्द्र इसके रचयिता है जिन्होंने इसे लोहट के पुत्र सावालदास के पठनार्थ लिखा था । स्वयं प्रकार ने अपनी प्रशस्ति निन्न प्रकार लिण्डी है
पट्टे श्रीददाचार्य तत्पश्रीसहस्रकीति: तत्प? श्रीत्रिभुवनकीतिदैव तत्पष्ट श्री गुरुरलकीलि तस्पट्ट नी गुणचन्द्रदेवमविरचितमहामंथ कर्मक्षयार्थ लोहट सुत पंडित श्री सावलदास पठमार्थ ।। भाव्य की एक प्रति में भंडार में हैं । प्रति अशुद्ध है तथा उसमें प्रथम २ पृष्ठ नहीं हैं। २ आध्यात्मिक गाथा
इस रचना का दूसरा नाम पट पद छःपय है । यह भट्टारकं लक्ष्मीचन्द्र की रचना है जो संभवतः गटारक सकलकीर्ति की परम्परा में हुये थे । रचना अपभ्रंश भाषा में निबद्ध है तथा उच्चकोटि की है।समें संसार की नश्वरता का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया गया है । इसमें २८ पद हैं। एक पद नीचे देखियेविरक्षा जाणीव पुणो विरसा सेवंति अप्पणो सामि, विरला ससहावरया परदव्य परम्मुद्दा विरला । ते. विरला जगि अस्थि जिकिचि परदन्छु ण इछाहि, ते विरला ससहाव करहिं रुइ णियमणि पिछहि ।। विरला सेवहिं सामि णित्त णिय देह वसंतड, विरला जाणहि अप्पु शुद्ध चेयण गुणवंतउ । मणु पत्तणु दुलह लहिवि सरयय कुलु उत्तमु जियउ, जिणु एम पयंपइ णिसुणि बुह गाह भरिण छप्पर किया ।
इसकी एक प्रति ज भंडार में सुरक्षित है । यह प्रति श्राचार्य नेमिचन्द्र के पढ़ने के लिये लिखी गई थी। ३ आराधमासार प्रबन्ध
आराधनासार प्रबन्ध में मुनि प्रभाचंद्र विरचित संस्कृत कथाओं का संग्रह है। मुनि प्रभाचन्द्र देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे 1 किन्तु प्रभाचन्द्र के शिष्य थे मुनि पानंन्दि जिनके द्वारा विरचित 'वर्द्धः मान पुराण' का परिचय आगे दिया गया है। प्रभाचन्द ने प्रत्येक कथा के अन्त में अपना परिचय दिया है 1 एक परिचय देखिये
श्रीमूलसंघे घरभारतीये गच्छे बलात्कारगणोति रम्थे । श्रीकुदकुन्दास्यमुनीन्द्रवंशे जातं प्रभाचन्द्रमहायतीन्द्रः ।।