________________
-२५देवेन्द्रचन्द्रार्कसम्मचितेन तेन प्रभा'चन्दमुनीश्वरेण । अनुमहाथै रचितः सुषाक्यः आराधनासारकथाप्रबन्धः ।। तेन क्रमेणव मयास्वशक्त्या श्लोकः प्रसिद्ध श्चनिगद्यते च ।
मार्गेण किं भानुकरप्रकाशे स्वलीलया गच्छति सर्वलोके ।।
आराधनासार बद्भुत सुन्दर कथा मंथ है । यह अभीतक अप्रकाशित है । ४ कवि वल्लभ
क भंडार में हरिचरणदास कृत दो रचनायें उपलब्ध हुई है। एक विहारी सतसई पर हिन्दी गद्य टीका है तथा दूसरी रचना कवि वल्लभ है । हरिचरणदास ने कृष्णोपासक प्राणनाथ के पास विहारी सतसई का अध्ययन किया था । ये श्रीनन्द पुरोहित की जाति के थे तथा 'मोहन' उनके आश्रयदाता थे जो बहुत ही उदार प्रकृति के थे। विहारी सतसई पर टीका इन्होंने संवत् १८३४ में समाप्त की थी। इसके एक वर्ष पश्चात् इन्होंने कविवल्लम की रचना की। इसमें काव्य के लक्षणों का वर्णन किया गया है । पूरे काव्य में २८४ पद्य है । संयत् १८५२ में लिखी हुई एक प्रति क भंडार में सुरक्षित है। ५ उपदेशसिद्धान्तरत्नमाला भाषा
देवीसिंह छाबडा १८ वीं शताब्दी के हिन्दी भाषा के विद्वान थे। ये जिनदास के पुत्र थे। संवत् १७६६ में इन्होंने श्रावक माधोदास गोलालारे के आग्रह त्रश उपदेश सिद्धान्तरत्नमाला की छन्दोबद्ध रचना की थी । मूल मंथ प्राकृत भाषा का है और वह नेमिचन्द्र भंडारी द्वारा रचित है। कवि नरवर निवासी थे जहां कूर्म वंश के राजा सिंह का राज्य था।
उपदेश सिद्धान्तरत्नमाला भाषा हिन्दी का एक सुन्दर ग्रंथ है जो पूर्णतः प्रकाशन योग्य है। पूरे मंथ में १६८ पश्य हैं जो दोहा, चौपई, चौबोला, गीताचंद, नाराय, सोरठा आदि छन्दों में __निबद्ध है । कवि ने मंथ समाप्ति पर जो अपना परिचय दिया है वह निम्न प्रकार है
वातसल गोती सूचरो, संचई सकल बखान । गोलालारे सुभमती, माधोदास सुआन १६०॥
चौपई महाकठिन प्राकृत की यांनी, जगत माहि प्रगट सुखदानी । या विधि चिंता मनि सुभाषी, भाषा छंद मांहि अभिलाषी ।। श्री जिनदास तनुज लघु भाषा, खंडेलवाल सावरा साखा । देवीत्यंध नाम सब भाष, कवित माहि चिंता मनि राखे ।