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________________ २२ समय हमारा वह संग्राहालय जयपुर के दर्शनीय स्थानों में से गिना जायेगा । प्रति वर्ष सैकड़ों की संख्या में शोध विद्यार्थी आयेंगे और जैन साहित्य के विविध विषयों पर स्वोज कर सकेंगे। इस संग्रहालय में शास्त्रों की पूर्ण सुरक्षा का ध्यान रखा जावे और इसका पूर्ण प्रबन्ध एक संस्था के अधीन हो । आशा है जयपुर का जैन समाज हमारे इस निवेदन पर ध्यान देगा और शास्त्रों की सुरक्षा एवं उनके उपयोग के लिये कोई निश्चित योजना बना सफेगा। ग्रंथ सूची के सम्बन्ध में ग्रंथ सूची के इस भाग को हमने सर्वांग सुन्दर बनाने का पूर्ण प्रयास किया है। प्राचीन एवं अज्ञात ग्रंथों की ग्रंथ प्रशस्ति एवं लेखक प्रशस्तियां दी गई हैं जिनसे विद्वानों को उनके कर्ता एवं लेखनकाल के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी मिल सके । गुटकों में महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है इसलिये घहुत से गुटकों के पूरे पाठ एवं शेष गुटको के उल्लेखनीय पाठ दिये हैं । ग्रंथ सूची के अन्त में ग्रंथानुक्रमणिका, ग्रंथ एवं ग्रंथकार, ग्राम नगर एवं उनके शासकों का उल्लेख ये चार परिशिष्ट दिये हैं। ग्रंथानुक्रमणिका को देखकर सूची में आये हुये किसी भी ग्रंथ का परिचय शीघ्र मालूम किया जा सकता है क्योंकि बहुत से ग्रंथों के नाम से उनके विपय के सम्बन्ध में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती | ग्रंथानुक्रमणिका में ४२०० प्रथों का उल्लेख आया है जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ग्रंथ सूची में निर्दिष्ट ६. सभी ग्रंथ मूल नथ है तथा शेष उन्हीं की प्रतियां हैं । इसी प्रकार मथ एवं ग्रंथकार परिशिष्ट से एक ही ग्रंथकार के इस सूची में कितने प्रथ आये हैं इसकी पूर्ण जानकारी मिल सकती है। प्राम एवं नगरों के परिशिष्ट में इन भंडारों में किस किस माम एवं नगरों में रचे हुये एवं लिखे हुये प्रथ संग्रहीत हैं यह जाना जा सकता है । इसके अतिरिक्त ये नगर कितने प्राचीन थे एवं उनमें साहित्यिक गतिविधियां किस प्रकार चलती थी इसका भी हमें आभास मिल सकता है । शासकों के परिशिष्ट में राजस्थान एवं भारत के विभिन्न राजा, महाराजा एवं बादशाहों के समय एवं उनके राज्य के सम्बन्ध में कुछ २ परिचय प्राप्त हो जाता है । ऐतिहासिक तथ्यों के संकलन में इस प्रकार के उल्लेख बहुत प्रामाणिक एवं महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं । प्रस्तावना में प्रश्र भंडारों के संक्षिप्त परिचय के अतिरिक्त अन्त में ४६ अन्नात प्रथों का परिचय भी दिया गया है जो इन मथों की जानकारी प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होगा। प्रस्तावना के साथ में ही एक अमात एवं महत्वपूर्ण प्रथों की सूची भी दी गई है इस प्रकार ग्रंथ सूची के इस भाग में अन्य सूचियों से ।सभी तरह की अधिक जानकारी देने का पूर्ण प्रयास किया है जिससे पाठक अधिक से अधिक लाभ उठा सकें। ग्रंथों के नाम, ग्रंथकर्ता का नाम, उनके रचनाकाल, भापा आदि के साथ-साथ उनके आदि अन्त भाग पूर्णतः ठीक २ देने का प्रयास किया गया है फिर भी कमियां रहना स्वाभाविक है । इसलिये विद्वानों से हमारा उदार दृष्टि अपनाने का अनुरोध है तथा यदि कहीं कोई कमी हो तो हमें सूचित करने का कष्ट करें जिससे भविष्य में इन कमियों को दूर किया जा सके ।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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