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________________ --२१ही मिलते है । प्रत्येक शास्त्र भंडार के व्यवस्थापकों का फतव्य है कि वे अपने यहां के गुवकों को बहुत ही सम्हाल कर रखें जिससे वै मष्ट नहीं होने पार्षे क्योंकि हमने देखा है कि बहुत से भंडारों के गुटके बिना श्रेष्टनों में बंधे हुये ही रखे रहते हैं और इस सरह धीरे धीरे उन्हें नष्ट होने की मानों श्राक्षा देदी शास्त्र भंडारों की सुरक्षा के संबंध में : राजस्थान के शास्त्र भंडार अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं इसलिये उनकी सुरक्षा के प्रश्न पर सबसे प्रहिन्ने विचार किया जाना चाहिये । छोटे छोटे गांवों में जहां जैनों के एक-एक दो-दो घर रह गये हैं प्रहां उनकी सुरक्षा होना अत्यधिक कठिन है । इसके अतिरिक्त कस्बों की भी यही दशा है | वॉ भी जैन समाज का शास्त्र भंडारों की ओर कोई ध्यान नहीं है । एक तो आजकल छपे हुये ग्रंथ मिलने के कारण इस्वलिखित ग्रंथों की कोई स्वाध्याय नहीं करते हैं, दूसरे वे लोग इनके महत्व को भी नहीं समझते हैं। शानिये समाज को शिकार की सुशा के लिये ऐसा कोई उपाय ढूंदना चाहिये जिससे उनका उपयोग भी होता रहे तथा वे सुरक्षित भी रह सके । यह तो निश्चित ही है कि छपे हुए ग्रंथ मिलमे पर इन्हें कोई पढ़ना नहीं चाहता। इसके अतिरिक्त इस और रुचि न होने के कारण आगे आने वाली प्रतति तो इन्हें पढ़ना ही भूल जावेगी । इसलिये यह निश्चित सा है कि भषिष्य में ये प्रय केवल विद्वानों के लिये ही उपयोगी रहेंगे और वे ही इन्हें पढ़ना तथा देखना अधिक पसन्द करेंगे। ग्रंथ भंडारों की सुरक्षा के लिये हमारा यह सुझाव है कि राजस्थान के अभी सभी जिलों के कार्यालयों पर इनका पका एक संग्रहालय स्थापित हो तथा उप प्रान्त के सभी शास्त्र भंडारों के ग्रंथ सन संग्रहालय में संग्रहीत कर लिये जाएँ, किन्तु यदि किसी किसी उपजिलों एवं कस्बों में भी जैनों की अच्छी बरसी है तो उन्हीं स्थानों पर भंडारों को रहने दिया जावे । जिलेवार यदि संग्रहालय स्थापित हो जाये तो वहां रिसर्च स्कालर्स श्रासानी से पहुंच कर उनका उपयोग कर सकते हैं तथा उनकी सुरक्षा भाभी पूर्णतः प्रवन्ध हो सकता है। इसके अतिरिक्त राजस्थान में जयपुर, अलवर, भरतपुर, नागौर, कीटा, दी, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, डूगरपुर, प्रतापगढ़, बांसवान आदि स्थानों पर इनके बड़े घमें संग्रहालय खोल दिये जावें तथा अनुसन्धान प्रेमियों को उन्हें देखने एवं पढ़ने की पूरी सुविधाएं दी जायें तो ये इस्तलिखित के प्रथ फिर भी सुरक्षित रह सकते हैं अन्यथा उनका सुरक्षित रहना पद्य कदिन होगा। जयपुर के भी कुछ शास्त्र भंडारों को छोड़कर अन्य भंडार कोई विशेष अच्छी स्थिति में नहीं है। जयपुर के अंब तक हमने १६ भंडारों की सूची तैयार की है लेकिन किसी भंडार में वेष्टन नहीं हैं तो कहीं बिना पुट्ठों के ही शास्त्र रखे हुये हैं । इमारी इस असावधानी के कारण ही संकदो प्रथ अपूर्ण हो गये हैं । यदि जयपुर के शास्त्र भंडारों के ग्रंथों का संग्रह एक केन्द्रीय संग्रहालय में कर लिया जाये तो उस
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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