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सूची की क्र. सं.
जैन विद्वान् ग्रंथ रचना के अतिरिक्त स्वयं ग्रंथों की प्रतिलिपियां भी किया करते थे। इन विद्वानों द्वारा लिखे गये ग्रंथों की पाण्डुलिपियां राष्ट्र की धरोहर एवं अमूल्य सम्पत्ति है। ऐसी पाण्डुलिपियों का प्राप्त होना सहज बात नहीं है लेकिन जयपुर के इन भंडारों में हमें स्वयं विद्वानों द्वारा लिखी हुई निम्न पाण्डुलिपियां प्राप्त हो चुकी हैं।
८४
१०४२
२६.२५
३६५२
५४३३
५३८२
५७२८
-२८
स्वयं ग्रंथकारों द्वारा लिखे हुये ग्रंथों की
५६५७
६०४४
प्रकार
कनककीर्ति के शिष्य सदाराम
रत्नकर म्हश्रावकाचार भाषा
गोम्मटसार जीवकांड भाषा
नाममाला
पंचमंगलपाठ
शीलरासा
मिध्यात्व खंडन
मूल प्रतियां
गुटका
परमात्म प्रकाश एवं तत्त्रसार
छयालीस ठाणा
मंथ नाम
पुरुषार्थ सिद्धयुपाय
सदासुख कासलीवाल पं. टोडरमल
पं० भारामल्ल
खुशालचन्द काला
जोधराज गोदीका
बख्तराम साह
टेकचंद
ढालुराम
ब्रह्मरायमल्ल
लिपि संवत्
१७०७
१६२०
१८ वीं शताब्दी
१६४३
१८४४
१७५०
१८३५
१६१३
गुटकों का महत्व
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शास्त्र भंडारों में हस्तलिखित ग्रंथों के अतिरिक्त गुटके भी संग्रह में होते हैं | साहित्यिक रचनाओं के संकलन की दृष्टि से ये गुटके बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । इनमें विविध विषयों पर संकलन किये हुए कभी कभी ऐसे पाठ मिलते हैं जो अन्यत्र नहीं मिलते। ग्रंथ सूची में आये हुये बारह भंडारों में ८५० गुटके हैं। इनमें सबसे अधिक गुटके भंडार में हैं। अधिकांश गुटकों में पूजा स्तोत्र एवं कथायें ही मिलती हैं लेकिन प्रत्येक भंडार में कुछ गुटके ऐसे भी मिल जाते हैं जिनमें प्राचीन एवं श्रलभ्य पाठों का संग्रह होता है। ऐसे गुटकों का श्र, ज, अ एवं ट भंडार में अच्छा संकलन है । १३ वीं शताब्दी की हिन्दी रचना जिनदत्त चौपई भंडार के एक गुटके में ही प्राप्त हुई है। इसी तरह अपभ्रंश की कितनी ही कथायें, ब्रह्मजिनदास, शुभचन्द, चील, ठक्कुरसी, पल्छ, मनराम आदि प्राचीन कवियों की रचनायें भी इन्हीं गुटकों में मिली हैं। हिन्दी पदों के संकलन के तो ये एकमात्र स्रोत है। अधिकांश हिन्दी विद्वानों का पद साहित्य इनमें संकलित किया हुआ होता है । एक एक गुटके में कभी कभी तो ३००, ४०० पद संग्रह किये हुये मिलते हैं। इन गुटकों में ही ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है | पट्टावलियां, छन्द, गीत, वंशावलि, बादशाहों के विवरण, नगरों की बसापत आदि सभी इनमें