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-औकी भाषा टीका भी उपलब्ध हुई है । इसकी रचना संवत् १७२२ में हुई थो। ५० दौलतरामजी कृत अध्यात्म बारहखडी की एक ऐसी प्रति मिली है जिसमें ४८२६. पद्य है। अब तक प्राप्त अध्यात्म बारहखडी को प्रतियों में यह सबसे महत्त्वपूर्ण एवं बृहद् प्रति है। इनके अतिरिक्त अन्य कितनी ही रचनायें हैं जो अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण हैं । इस प्रकार भएडार में १४ बों शताब्दी से लेकर २० वी शताब्दी तक हिन्दी का उत्तम साहित्य मिलता है।
भण्डार में गुटकों को संख्या ३२४ है। प्राचीन काल में गुटकों में महत्त्वपूर्ण सामग्री के संग्रह करने की काफी रुचि थी। इन गुटकों में दैनिक काम आने वाले पाठों के अतिरिक्त महत्त्वपूर्ण साहित्य का भी संग्रह कर लिया करते थे । भण्डार में उपलब्ध अधिकांश गुटके स्वयं संग्रहकर्ता के हाथ से लिखे हुये हैं । कभी कभी श्रावक गण विद्वानों से भी उत्तम पाठ संग्रह करा लिया करते थे। इस भण्डार में उपलब्ध अनेक गुट के बहुत ही महत्व के हैं । संवत् १३७१ की जो हिन्दी की रचना मिली है वह भी गुटके में ही संग्रहीत थी । इन गुटकों में पूजा, स्तोत्र, भजन, आयुर्वेद के नुस्खे, मंत्र तंत्र ऐतिहासिक तथ्य अादि का उत्तम संग्रह मिला है। सभी जैन कवियों के पद व भजन संग्रह के अतिरिक्त नानक, गोपीचन्द, कबीर, मीराँ आदि के भी कितने ही पद इन गुटकों में लिखे हुये हैं । २५७ ३ गुटके में पाठक गण देखेंगे कि कितने कवियों के सबद लिखे हुये हैं । वास्तव में यदि इन गुटकों के अध्ययन में थोडा समय दिया जावे तो काफी महत्त्वपूर्ण सामग्री की प्राप्ति हो सकती है।
जैसा कि पहिले कहा जा चुका है, बडा मन्दिर सदा ही जयपुर के विद्वानों का केन्द्रस्थान रहा है। इसो कारण इस भण्डार में निम्न विद्वानों के अन्य उनके स्वयं के हाथ से लिखे हुये भी हैं। स्वयं ग्रन्थ निर्माता के हाथ से लिखे हुये ग्रन्थ की उपलब्धि होना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । ऐसे ग्रन्थों का ज्यों ज्यों समय बीतता जाता है से ही उनका मूल्य भी बढ़ता चला जाता है। इसलिये ऐसो प्रतियां देश एवं समाज की निधि हैं जिन्हें काफी सतर्कता से सुरक्षित रखने का प्रयत्न करते रहना चाहिये । भण्डार में निम्न विद्वानों के स्वयं अपने हाथ से लिखे ग्रन्थ मिलते हैं
१. श्री जोधराज गोदीका २. पं० जयचन्द्रजी छाबडा
पद्मनन्दिपञ्चविंशतिभाषा १. प्रमेयरत्नमाला भाषा २. द्रव्यसंग्रह भाषा ३. स्वामिकात्तिकेयानुप्रेक्षा भाषा ४. सर्वार्थसिद्धि भाषा ५. अष्टपाहुड भाषा ६. समयसार भाषा ७. ज्ञानार्णव भाषा