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-श्री
पुराण की टीका, तवार्थसूत्र टीका, नागकुमार चरित्र, भरटकद्वात्रिंशिका, राजवंशवर्णन, आदिपुराण की सचित्र प्रति उल्लेखनीय है । अष्टसहस्त्रो की संवत् १४६० को एक प्राचीन प्रति भण्डार में प्राप्त हुई है। प्रति शुद्ध एवं सुन्दर है तथा सम्पादन करनेवालों के लिये काफी महत्व की है। आचार्य गुणभद्र कृत उत्तरपुराण का एक संस्कृत टिप्पण भी प्राप्त हुआ है जिससे पुराण के गूड अर्थ को समझने में काफी सहायता मिल सकती है। उत्तर पुराण पर मिलने वाला यह पहिला टिप्पण है। जिनसेनाचार्य कृत आदिपुराण की भी एक सचित्र प्रति इसी भण्डार में है। यद्यपि चित्र उतने सुन्दर नहीं हैं फिर भी प्रति दर्शनीय है । भरद्वात्रिंशिका में छोटी छोटी ३२ कथाओं का संग्रह है जो छोटे बच्चों के लिये काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं । ' राजवंशवर्णन ' एक छोटा सा ग्रन्थ है जिनमें भारत में होने वाले प्रायः सभी राजवंशों तथा उनमें होने वाले राजाओं का नाम, उनका शासनकाल आदि दिया हुआ है । इसी प्रकार तत्त्वार्थ सूत्र की टीका एवं नागकुमार चरित्र ( धर्मधर कृत ) ये दोनों ही रचनायें नवीन हैं और उत्तम हैं।
भण्डार में उपलब्ध अपभ्रंश साहित्य तो और भी महत्त्वपूर्ण है । अपभ्रंश एवं प्राकृत के ग्रन्थों को प्राचीन प्रतियों के अतिरिक्त कुछ ऐसी भी रचनायें हैं जो केवल इसी भण्डार में सर्व प्रथम उपलब्ध हुई हैं। प्राचीन प्रतियों में कुन्दकुन्दाचार्य कृत पञ्चास्तिकाय की संवत् १३२६ की प्रति मिली है जो भण्डार में उपलब्ध प्रतियों में सबसे प्राचीन प्रति है । इसके अतिरिक्त जितनी भी अन्य प्रतियां हैं वे अधिकांश १४ वीं शताब्दी से १६ वीं शताब्दी तक की हैं | महाकवि पुष्पदन्त विरचित आदिपुराण की यहाँ एक सचित्र प्रति भी उपलब्ध हुई है । यह प्रति संवत् १५६७ की है। इसमें ५०० से भी अधिक रंगीन वित्र हैं। सभी चित्र भगवान् आदिनाथ एवं अन्य महापुरुषों के जीवन से सम्बन्ध रखने वाले हैं। चित्र उत्तम एवं कलापूर्ण हैं | नवीन उपलब्ध साहित्य में महाकवि स्वयम्भू कृत पउमचरिय का टिप्पण, महाकवि वीर कृत जम्बूस्वामी पर संस्कृत टिप्पण, आचार्य श्रुतकीर्ति कृत योगसार (योगशास्त्र), वारकरी दोहा, दामोदर कृत रोमियाह चरिउ तथा तेजपाल कृत संभवणाद चरित्र उल्लेखनीय हैं । महाकवि धवल के हरिवंशपुराण की एक प्राचीन एवं सुन्दर प्रति भी मिली है। हरिवंशपुराण की एक या दो प्रतियां हो भारतवर्ष में उपलब्ध हैं ऐसा पढने में आया है । इसी प्रकार स्वयम्भू के पउमचरिय एवं बीर के जम्बूस्वामी चरि की भी सुन्दर प्रतियां उपलब्ध हुई हैं। इन ग्रन्थों की प्रतियां भी अन्य भण्डारों में बहुत कम संख्या में मिलती हैं ।
हिन्दी भाषा की भी कितनी ही नवीन रचनाओं का पता लगा है। इसके अतिरि जैन विद्वानों द्वारा लिखित हिन्दी जैन साहित्य का उत्तम संग्रह है । कवि देल्ह कृत 'चउबी
हिन्दी की प्राचीन रचना मिली है। इसकी रचना संवत् १३७१ में समाप्त हुई थी। श्री दशरथ निगोत्या द्वारा संवत् १७१८ में विरचित धर्मपरीक्षा की हिन्दी गद्य टीका एवं ब्रह्मनेमिदत्त विरचित नेमिनाथ पुराण की or टीका हिन्दी गद्य साहित्य की उल्लेखनीय रचनायें हैं। श्री जोधराज गोदीका कृत पद्मनन्दि-पंचविंशति