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* आमेर भडार के ग्रन्थ
उत्तरपुराण |
रचयिता भट्टारक सकलकीर्ति । भाषा संस्कृत | पत्र संख्या २१६. साइन ९०/४५ इञ्च । लिपि संवत् १९०५. प्रति नवोन है ।
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उदय प्रभारचना ।
रचयिता श्री उदयप्रभाचार्य । भाषा संस्कृत | पृष्ठ संख्या ४४ राइज: १४५ पंडियां तथा प्रति पंक्ति में ३५-४० अक्षर । विषय-जैन दर्शन । मन्त्र कार ने आचार्य हेमचन्द्र दिवाकर महाराज कुमार पाल आदि का भी उल्लेख किया है । सिद्धसेन दिवाकर विरचित द्वात्रिंशा शका के अनुसार इस ग्रन्थ की रचना की गयी है। ग्रन्थ सटीक है। कारिकाओं की टीका है जो स्पष्ट और सरल है | मन्त्र अपूर्ण है ५४ से आगे के पृष्ठ नहीं है । .
मंगलाचरण
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यस्य ज्ञानमनं तवस्तुविषयं पूज्यते देवतैः ।
नित्यं यस्य वचो न दुर्नयकृतैः कोलाहलैलुप्यते ॥ रागद्व ेषमुखाद्विषां च परिपंत् क्षिप्ता क्षणायेन सा
स श्री वीरप्रभुविधूतकलुषां बुद्धिविधत्तां मम ॥ १ ॥
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विदितर्वार्थान् विश्वद्धिपरिभूषिताम् ।। १ F श्री कुन्दकुन्दनामान यंती संयतमरसर उमास्वातिसमतादिभद्रो संपूज्यपादक || २ ||
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पृष्ठ पर १४
सिद्धसेन
उपदेशरत्नमाला |
रचयिता आचार्य श्री सकल भूषण | भाषा संस्कृत | पत्र संख्या १३६ पत्र संख्या ३३८३. रचना संवत् १६२७. लिपि संवत् १७४५. भट्टारक श्री जगत्कीर्ति के शासनकाल में श्री गंगाराम छावडा श्री वनमाली दास पाड्या, श्री मन सेठी, श्री वेणा पांड्या, श्री माघीसाह, पाटणी, श्री जंगा सोनी, श्री पूरा अं आदि सज्जनों ने उक्त प्रन्थ की प्रतिलिपि कराई ।
अजमेरा
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आरम्भ...
तीर्थकरों की स्तुति करने के पश्चात् पूर्व प्रसिद्ध आचार्यों का इस प्रकार स्मरण किया हैश्रीमदुवृषभसेनादिगौतमांतगणेशिनः ।
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